जुनून का दूसरा नाम: शीतल देवी

जुनून का दूसरा नाम: शीतल देवी

शीतल देवी बनीं पैरा वर्ल्ड आर्चरी रैंकिंग्स में विश्व की नंबर 1 खिलाड़ी

“सपने वो नहीं जो हम सोते वक्त देखते हैं, सपने तो वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।” – ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

क्या आप कभी निराश महसूस करते हैं? लगता है जैसे जीवन ने आपको पर्याप्त अवसर नहीं दिए? ऐसे समय में, हमें उन लोगों की कहानियां याद करनी चाहिए जिन्होंने असंभव को संभव बनाया। आज हम बात करेंगे एक ऐसी नायिका की, जिन्होंने अपनी चुनौतियों को अपनी ताकत बनाया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं शीतल देवी की, जिन्होंने अपने जज्बे और संघर्ष से दुनिया को प्रेरणा दी।

शीतल की कहानी उन सभी के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जो जीवन की चुनौतियों से घबरा जाते हैं या विकल्पों की कमी महसूस करते हैं। उनका जीवन दर्शाता है कि किसी भी स्थिति में, चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, आत्मविश्वास और समर्पण से हम अपने सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं।

आज हम बात करेंगे एक ऐसी नायिका की, जिन्होंने अपनी चुनौतियों को अपनी ताकत बनाया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं शीतल देवी की, जिन्होंने अपने जज्बे और संघर्ष से दुनिया को प्रेरणा दी।

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जन्म और शुरुआती जीवन

10 जनवरी 2007 को जम्मू-कश्मीर में जन्मी शीतल, फोकोमेलिया नामक दुर्लभ जन्मजात विकार से प्रभावित थीं, जिसके कारण उनके हाथ विकसित नहीं हुए थे। लेकिन शीतल ने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।

प्रशिक्षण और तैयारी

जीवन की इस चुनौती के साथ, शीतल ने तीरंदाजी में अपना करियर बनाने का फैसला किया। उन्होंने अपने पैरों का इस्तेमाल करके तीरंदाजी की कला में महारत हासिल की। उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी, परंतु उनका दृढ़ संकल्प और कठोर परिश्रम ने उन्हें इस कला में निपुण बनाया।

उपलब्धियाँ और सम्मान

शीतल ने न केवल भारतीय पैरा-तीरंदाजी में अपना नाम रोशन किया बल्कि विश्व स्तर पर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 2022 के एशियाई पैरा गेम्स में उन्होंने मिश्रित युगल और महिला व्यक्तिगत स्पर्धाओं में दो स्वर्ण पदक और महिला युगल स्पर्धा में रजत पदक जीता। इसके अलावा, उन्होंने यूरोपीय पैरा-तीरंदाजी कप में भी दो रजत और एक कांस्य पदक जीते।

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प्रेरणा का स्रोत

शीतल की यह यात्रा हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने हमें यह सिखाया है कि जीवन में चुनौतियाँ आपको रोक नहीं सकतीं, अगर आपके इरादे मजबूत हों। उनकी कहानी हमें बताती है कि अगर हम अपने सपनों के प्रति समर्पित हों, तो कोई भी बाधा हमें उन्हें पूरा करने से नहीं रोक सकती।

आइए, हम सभी शीतल देवी की इस अद्भुत यात्रा से प्रेरणा लें और अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाएं।

“सपने उन्हें पूरा करने के लिए होते हैं, जो जागते हुए भी सपने देखते हैं।”

विश्व तीरंदाजी चैंपियन अदिति स्वामी और ओजस देवताले, साथ ही बिना हाथों वाली 16 वर्षीय प्रतिभाशाली शीतल देवी, जिन्होंने एशियाई पैरा खेलों में विजय प्राप्त की, को 9 जनवरी 2024 को दिल्ली में आयोजित एक समारोह में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार, जो 1961 से प्रदान किया जा रहा है, भारत में खेल क्षेत्र में दूसरा सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। इस प्रतिष्ठित सम्मान का प्रदान करने का कार्य भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया।

6 Replies to “जुनून का दूसरा नाम: शीतल देवी”

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