श्री गणेश चालीसा का पाठ हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता और सिद्धिदाता के रूप में पूजा जाता है, उनकी स्तुति के लिए श्री गणेश चालीसा का पाठ विशेष महत्व रखता है। यह चालीसा न केवल भक्तों के मन को शांति और समृद्धि प्रदान करती है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाने का आशीर्वाद भी देती है।
इस लेख में हम आपको श्री गणेश चालीसा के प्रत्येक श्लोक का हिंदी में सरल अर्थ प्रदान करेंगे, ताकि आप न केवल इसे पढ़ सकें, बल्कि इसके गहरे अर्थ को समझकर भगवान गणपति का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। आइए जानते हैं श्री गणेश चालीसा का पाठ और उसके प्रत्येक श्लोक का अर्थ।
श्री गणेश चालीसा हिंदी अर्थ सहित
।। दोहा और अर्थ ।।
“जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल” ।।
हिंदी अर्थ :- हे सद्गुणों के सदन भगवान श्री गणेश आपकी जय हो, कवि भी आपको कृपालु बताते हैं। आप कष्टों का हरण कर सबका कल्याण करते हो, माता पार्वती के लाडले श्री गणेश जी महाराज आपकी जय हो।
।। चौपाई और अर्थ ।।
“जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू” ।। 1 ।।
हिंदी अर्थ :- हे देवताओं के स्वामी, देवताओं के राजा, हर कार्य को शुभ व कल्याणकारी करने वाले भगवान श्री गणेश जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो।
“जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता” ।। 2 ।।
“वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन” ।। 3 ।।
हिंदी अर्थ :- घर-घर सुख प्रदान करने वाले हे हाथी से विशालकाय शरीर वाले गणेश भगवान आपकी जय हो। श्री गणेश आप समस्त विश्व के विनायक यानि विशिष्ट नेता हैं, आप ही बुद्धि के विधाता है बुद्धि देने वाले हैं। हाथी के सूंड सा मुड़ा हुआ आपका नाक सुहावना है पवित्र है। आपके मस्तक पर तिलक रुपी तीन रेखाएं भी मन को भा जाती हैं अर्थात आकर्षक हैं।
“राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।। 4 ।।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं” ।। 5 ।।
हिंदी अर्थ :- आपकी छाती पर मणि मोतियां की माला है आपके शीष पर सोने का मुकुट है व आपकी आखें भी बड़ी बड़ी हैं। आपके हाथों में पुस्तक, कुठार और त्रिशूल हैं। आपको मोदक का भोग लगाया जाता है व सुगंधित फूल चढाए जाते हैं।
“सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ।। 6 ।।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।
गौरी लालन विश्व-विख्याता” ।। 7 ।।
हिंदी अर्थ :- पीले रंग के सुंदर वस्त्र आपके तन पर सज्जित हैं। आपकी चरण पादुकाएं भी इतनी आकर्षक हैं कि ऋषि मुनियों का मन भी उन्हें देखकर खुश हो जाता है। हे भगवान शिव के पुत्र व षडानन अर्थात कार्तिकेय के भ्राता आप धन्य हैं। माता पार्वती के पुत्र आपकी ख्याति समस्त जगत में फैली है।
“ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।
मुषक वाहन सोहत द्वारे” ।। 8 ।।
“कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी” ।। 9 ।।
हिंदी अर्थ :- ऋद्धि-सिद्धि आपकी सेवा में रहती हैं व आपके द्वार पर आपका वाहन मूषक खड़ा रहता है। हे प्रभु आपकी जन्मकथा को कहना व सुनना बहुत ही शुभ व मंगलकारी है।
“एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ।। 10 ।।
“भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।
तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा” ।। 11 ।।
हिंदी अर्थ :- एक समय गिरिराज कुमारी यानि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए भारी तप किया। जब उनका तप व यज्ञ अच्छे से संपूर्ण हो गया तो ब्राह्मण के रुप में आप वहां उपस्थित हुए।
“अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।
बहुविधि सेवा करी तुम्हारी” ।। 12 ।।
“अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा” ।। 13 ।।
हिंदी अर्थ :- आपको अतिथि मानकार माता पार्वती ने आपकी अनेक प्रकार से सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर आपने माता पार्वती को वर दिया।
“मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।
बिना गर्भ धारण यहि काला” ।। 14 ।।
“गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।
पूजित प्रथम रूप भगवाना” ।। 15 ।।
हिंदी अर्थ :- आपने कहा कि हे माता आपने पुत्र प्राप्ति के लिए जो तप किया है, उसके फलस्वरूप आपको बहुत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होगी और बिना गर्भ धारण किए इसी समय आपको पुत्र मिलेगा। जो सभी देवताओं का नायक कहलाएगा, जो गुणों व ज्ञान का निर्धारण करने वाला होगा और समस्त जगत भगवान के प्रथम रुप में जिसकी पूजा करेगा।
“अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।
पालना पर बालक स्वरूप हवै” ।। 16 ।।
“बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।
लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना” ।। 17 ।।
हिंदी अर्थ :- इतना कहकर आप अंतर्धान हो गए व पालने में बालक के स्वरुप में प्रकट हो गए। माता पार्वती के उठाते ही आपने रोना शुरु किया, माता पार्वती आपको गौर से देखती रही आपका मुख बहुत ही सुंदर था माता पार्वती में आपकी सूरत नहीं मिल रही थी।
“सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।
नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं” ।। 18 ।।
“शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं” ।। 19 ।।
हिंदी अर्थ :- सभी मगन होकर खुशियां मनाने लगे नाचने गाने लगे। देवता भी आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे। भगवान शंकर माता उमा दान करने लगी। देवता, ऋषि, मुनि सब आपके दर्शन करने के लिए आने लगे।
“लखि अति आनन्द मंगल साजा ।
देखन भी आये शनि राजा” ।। 20 ।।
“निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं” ।। 21 ।।
हिंदी अर्थ :- आपको देखकर हर कोई बहुत आनंदित होता। आपको देखने के लिए भगवान शनिदेव भी आये। लेकिन वह मन ही मन घबरा रहे थे और बालक को देखना नहीं चाह रहे थे।
“गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो” ।। 22 ।।
“कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई” ।। 23 ।।
हिंदी अर्थ :- शनिदेव को इस तरह बचते हुए देखकर माता पार्वती नाराज हो गई व शनि को कहा कि आप हमारे यहां बच्चे के आने से व इस उत्सव को मनता हुआ देखकर खुश नहीं हैं। इस पर शनि भगवान ने कहा कि मेरा मन सकुचा रहा है, मुझे बालक को दिखाकर क्या करोगी? कुछ अनिष्ट हो जाएगा।
“नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।
शनि सों बालक देखन कहयऊ” ।। 24 ।।
“पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।
बालक सिर उड़ि गयो अकाशा” ।। 25 ।।
हिंदी अर्थ :- लेकिन इतने पर माता पार्वती को विश्वास नहीं हुआ व उन्होंनें शनि को बालक देखने के लिए कहा। जैसे ही शनि की नजर बालक पर पड़ी तो बालक का सिर आकाश में उड़ गया।
“गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।
सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी” ।। 26 ।।
“हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।
शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा” ।। 27 ।।
हिंदी अर्थ :- अपने शिशु को सिर विहिन देखकर माता पार्वती बहुत दुखी हुई व बेहोश होकर गिर गई। उस समय दुख के मारे माता पार्वती की जो हालत हुई उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता। इसके बाद पूरे कैलाश पर्वत पर हाहाकार मच गया कि शनि ने शिव-पार्वती के पुत्र को देखकर उसे नष्ट कर दिया।
“तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।
काटी चक्र सो गज सिर लाये” ।। 28 ।।
“बालक के धड़ ऊपर धारयो ।
प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो” ।। 29 ।।
हिंदी अर्थ :- उसी समय भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर वहां पंहुचे व अपने सुदर्शन चक्कर से हाथी का शीश काटकर ले आये। इस शीष को उन्होंनें बालक के धड़ के ऊपर धर दिया। उसके बाद भगवान शंकर ने मंत्रों को पढ़कर उसमें प्राण डाले।
“नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे” ।। 30 ।।
“बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा” ।। 31 ।।
हिंदी अर्थ :- उसी समय भगवान शंकर ने आपका नाम गणेश रखा व वरदान दिया कि संसार में सबसे पहले आपकी पूजा की जाएगी। बाकि देवताओं ने भी आपको बुद्धि निधि सहित अनेक वरदान दिये। जब भगवान शंकर ने कार्तिकेय व आपकी बुद्धि परीक्षा ली तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा आने की कही।
“चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई” ।। 32 ।।
“चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें” ।। 33 ।।
हिंदी अर्थ :- आदेश होते ही कार्तिकेय तो बिना सोचे विचारे भ्रम में पड़कर पूरी पृथ्वी का ही चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े, लेकिन आपने अपनी बुद्धि लड़ाते हुए उसका उपाय खोजा। आपने अपने माता पिता के पैर छूकर उनके ही सात चक्कर लगाये।
“धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे” ।। 34 ।।
“तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।
शेष सहसमुख सके न गाई” ।। 35 ।।
हिंदी अर्थ :- आपकी बुद्धिमता को देखकर भगवान शिव का हृदय बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने आपकी प्रशंसा की तथा आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की। हे भगवान श्री गणेश आपकी बुद्धि व महिमा का गुणगान तो हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता।
“मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।
करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी” ।। 36 ।।
“भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा” ।। 37 ।।
हिंदी अर्थ :- हे भगवान श्रीगणेश!! मैं तो बुद्धिहीन हूँ, पापी हूँ, दुखी हूँ, मैं किसी युक्ति से आपकी प्राथना करूँ। हे प्रभु आपका दास रामसुंदर आपका ही स्मरण करता है। इसकी दुनिया तो प्रयाग का ककरा गांव हैं जहां पर दुर्वासा जैसे ऋषि हुए हैं।
“अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै” ।। 38 ।।
हिंदी अर्थ :- हे प्रभु दीन दुखियों पर अब दया करो और अपनी शक्ति व अपनी भक्ति देनें की कृपा करें।
।। दोहा ।।
“श्री गणेशा यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश” ।।
हिंदी अर्थ :- जो भी भक्तजन नियमित रूप से इस श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa) का पाठन अपने अन्तर्मन से करता हैं, उसके घर में मंगल कार्य होते हैं तथा समाज में प्रतिष्ठा में वृद्धि होती हैं। हजारों संबंधों की पालना करते हुए, ऋषि पंचमी के दिन, आपकी यह गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa) समाप्त हुई।
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