महामृत्युंजय मंत्र का महत्व
महामृत्युंजय मंत्र, भारतीय मान्यताओं और वेदों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मंत्र अगंतुक मौत और रोग से बचाव करता है, जीवन की आयु बढ़ाता है और पथ दर्शन करता है। महामृत्युंजय मंत्र का श्लोक ऋग्वेद में मिलता है, जो भगवान शिव के प्रति मृत्यु को पराजित करने का स्तवन है।
हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार, इसे जाप करने से मनुष्य को मृत्यु से मुक्ति मिलती हैं। यह मंत्र भगवान शिव की तीसरी आँख को प्रतिष्ठापित करता है, जो सच्चाई और बोध का प्रतीक है।
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात् मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात्।”
हर शब्द का अपना विशिष्ट अर्थ होता है और जब हम उसे बोलते हैं, तो उसकी ऊर्जा हमारे आंतरिक तंत्र में फैलती है। “ॐ” संसार की सारी शक्तियों का प्रतीक है। “त्र्यम्बक” भगवान शिव को सम्बोधित करता है, जो तीनों लोकों के स्वामी हैं। “यजामहे” का अर्थ है हम पूजा करते हैं और “सुगन्धिं” सुगंध, सुवास का दाता होता है। “पुष्टिवर्धनम” जीवन शक्ति का बढ़ाने वाला होता है। “उर्वारुकमिव” कालबोंधी फल, भगवान शिव का प्रतीक और “बंधनात्”, “मृत्योर्मुक्षीय” और “मा अमृतात्” मृत्यु से मुक्ति का संकेत करते हैं।
विख्यात विज्ञानी और धार्मिक विद्वान डॉ. डिविड फ्रॉली ने कहा है कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना सामर्थ्य और मनोबल बढ़ाने में मदद करता है, शारीरिक और मानसिक रोगों के उपचार में सहायक होता है। इसे अक्सर ध्यान, योग और प्राणायाम के साथ जोड़ा जाता है।
पंडित जसराज, एक विख्यात भारतीय संगीतकार, ने कहा है कि महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना एक व्यक्ति के आत्मिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।
सारांश में, महामृत्युंजय मंत्र एक शक्तिशाली और पवित्र मंत्र है जो हमें मृत्यु, रोग और पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए मदद करता है। इसे उच्चारण करने और समझने से हमें सामर्थ्य, ऊर्जा और जीवन का लक्ष्य प्राप्त होता है।+