श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र – Radha Kripa Kataksha Stotram Lyrics in Hindi

श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र – Radha Kripa Kataksha Stotram Lyrics in Hindi

🌸 श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र – प्रेम, भक्ति और कृपा की अभिव्यक्ति 🌸

“श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र” एक अत्यंत सुंदर और प्रभावशाली स्तोत्र है, जो श्री राधारानी की अनन्य कृपा प्राप्त करने हेतु गाया जाता है। संस्कृत में रचित यह स्तुति, भक्त के हृदय में प्रेम, समर्पण और आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करती है। इस स्तोत्र का प्रत्येक श्लोक राधाजी के दिव्य स्वरूप, उनके सौंदर्य, लीलाओं और कृपा-दृष्टि का भावपूर्ण वर्णन करता है।

जो भक्त सच्चे मन से इसका पाठ करता है, उसे राधा रानी की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है और वह श्रीकृष्ण के प्रेम व सेवा के योग्य बनता है। यह स्तोत्र राधा-कृष्ण भक्ति मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक और उपयोगी है।

🕉️ श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्रम्

(1)
मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी ।
प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकुञ्जभूविलासिनी ॥
व्रजेन्द्रभानुनन्दिनी व्रजेन्द्रसूनुसंगते ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
हे राधे! जिनका मुख प्रसन्न कमल के समान है, जो निकुंज वन में क्रीड़ा करती हैं, तीनों लोकों का दुःख हरनेवाली हैं, ऋषि-मुनियों द्वारा वंदित हैं, व्रज के राजा की पुत्री हैं, श्रीकृष्ण की संगिनी हैं – कृपया कब मुझे अपने कृपा कटाक्ष का पात्र बनाओगी?


(2)
अशोकवृक्षवल्लरी वितानमण्डपस्थिते ।
प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङ्घ्रिकौमले ॥
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जो अशोक वृक्ष की बेलों के मण्डप में स्थित हैं, जिनके चरण प्रवाल के समान लालिमा युक्त और कोमल हैं, वर और अभय मुद्रा वाले करों से भक्तों को सम्पत्ति प्रदान करती हैं – हे राधे! कब मुझे अपने कृपा-संबल का भागी बनाओगी?


(3)
अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां ।
सुविभ्रमससंब्रम दृगन्तबाणपातनैः ॥
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जिनकी भौहें कामदेव की लीला को लज्जित करती हैं, जिनकी चंचल दृष्टि के बाणों से श्रीकृष्ण सदा वशीभूत रहते हैं – हे राधे! कब आप मुझे उस प्रेमभरे कटाक्ष की कृपा से नहलाओगी?


(4)
तडित्सुवर्णचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे ।
मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्डले ॥
विचित्रचित्रसंचरच्चकोरशावलोचने ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जिनका शरीर बिजली से भी अधिक चमकीला है, जिनका मुख करोड़ों शरत्पूर्ण चन्द्रों की आभा को मात देता है, और जिनकी आंखें चकोरों के समान सुंदर हैं – हे राधे! क्या मुझे कभी आपके कृपादृष्टि का भागी बनने का सौभाग्य मिलेगा?


(5)
मदोन्मदातियौवने प्रमोदमानमण्डिते ।
प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपण्डिते ॥
अनन्यधन्यकुञ्जराजकामकेलिकोविदे ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
हे राधे! जो यौवन से भरपूर हैं, प्रेम में रंगी हैं, लीलाओं में पारंगत हैं, श्रीकृष्ण की काम-लीलाओं में दक्ष हैं – कब आप मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाएँगी?


(6)
अशेषहावभावधीरहीरहारभूषिते ।
प्रभूतशातकुम्भकुम्भकुम्भकुम्भसुस्तनी ॥
प्रशस्तमन्दहास्यचूर्णपुण्यसौख्यसागरे ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जो अनेकों भाव-भंगिमाओं से सुशोभित हैं, मणियों के हारों से अलंकृत हैं, विशाल स्तनों के साथ शोभायमान हैं, जिनका मंद मुस्कान अमृत समान सुख देती है – हे राधे! मुझे भी अपने कृपा कटाक्ष का भाग कब बनाओगी?


(7)
मृणालबालवल्लरीतरंगरंगदोलते ।
लतागलास्यलोलनीललोचनावलोकने ॥
ललल्लुलन्मनोज्ञमुग्धमोहनाश्रये ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जिनकी चंचल दृष्टि वनों की बेलों की तरह लहराती है, जिनकी लता सदृश गर्दन और नील नेत्र मन को मोहित करते हैं – हे राधे! क्या मैं कभी आपका प्रेमपूर्ण कृपा दृष्टि का पात्र बन पाऊँगा?


(8)
सुवर्णमालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे ।
त्रिसूत्रमङ्गलीगुणत्रिरत्नदीप्तदीधिते ॥
सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जो सुनहरी माला से भूषित हैं, जिनका गला सुंदर रेखाओं से युक्त है, त्रिरत्नों से चमकते हैं, और जिनके केशों में फूलों का गुच्छा सजा है – हे राधे! क्या मुझे भी आपकी कृपा दृष्टि मिल सकती है?


(9)
नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुणे ।
प्रशस्तरत्नकिङ्किणीकलापमध्यमञ्जुले ॥
करीन्द्रशुण्डदण्डिकावरोरसौभगोरुके ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जिनके नितम्ब पुष्पों की मेखला से सजे हैं, रत्नों की किण्किणियाँ उनकी कमर को शोभायमान बनाती हैं, जिनकी जंघाएं हाथी की सूंड के समान सुडौल हैं – हे राधे! मुझे भी अपने सौंदर्य की कृपा से अनुग्रहित कीजिए।


(10)
अनेकमन्त्रणादमञ्जुनूपुरारवस्खलत् ।
समाजराजहंसवंशनिक्वणातिगर्विते ॥
विलोलहेमवल्लरीवितम्बचारुचामरे ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जिनके चरणों की नूपुर अनेक मंत्रों की तरह मधुर ध्वनि करते हैं, जो हंसों के समान चलते हुए गर्वित प्रतीत होती हैं – हे राधे! क्या मैं कभी आपके सौंदर्य और कृपा का अधिकारी बन पाऊँगा?


(11)
अनन्तकोटिविष्णुलोकनामपद्मजार्चिते ।
हिमादिजा पुलोमजाविरिञ्चिजावरप्रदे ॥
अपारसिद्धिवृन्दसत्पदाङ्गुलीनखोज्वले ।
कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम् ॥

👉 अर्थ:
जिनकी सेवा अनंत विष्णु लोकों में होती है, जो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती को वरदान देती हैं, जिनके चरणों की अंगुलियाँ सिद्धियों से दमकती हैं – हे राधे! मुझे कृपा दृष्टि से कब विभूषित करोगी?


(12)
मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी ।
त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी ॥
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी ।
व्रजेश्वरी व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोऽस्तु ते ॥

👉 अर्थ:
हे श्रीराधे! आप यज्ञों, क्रियाओं, देवताओं, वेदों, नियमों, लक्ष्मी, क्षमा और आनंदवन की अधीश्वरी हैं। व्रज की अधिपति, श्रीराधिके! आपको मेरा नमन।


(13)
इतीदमतिभूतस्तवं निशम्य भानुनन्दिनी ।
करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥
भवेत्तदैकसंचितत्रिरूपकमनाशनं ।
लभेत्तदव्रजेन्द्रसूनुमण्डलप्रवेशनम् ॥

👉 अर्थ:
जो भी यह अद्भुत स्तोत्र, हे भानु-नन्दिनी (राधा रानी), भक्तिपूर्वक पढ़ेगा – आप उसे अपनी कृपा-दृष्टि दें, उसके सारे दोष नष्ट हों और वह व्रज के अधिपति श्रीकृष्ण के निकट स्थान प्राप्त करे।


॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥