कबीर के दोहे: जीवन और समझदारी की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ – Kabir k dohe

कबीर के दोहे: जीवन और समझदारी की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ – Kabir k dohe

भारतीय संस्कृति में संत कबीर का महत्वपूर्ण स्थान है। उनके दोहों में जीवन की गहरी सत्यताओं और मानवता के मूल सिद्धांतों का चित्रण है। आज के समय में, जब हम अधिक तनाव और चिंता में डूबे हुए हैं, कबीर के दोहे हमें एक स्पष्ट दिशा और आशा की किरण प्रदान करते हैं। इस लेख में, हम कबीर के चुनिंदा दोहों को उनके अर्थ के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं, जो स्ट्रेस प्रबंधन और जीवन में संतुलन पाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आइए जानते हैं कैसे ये प्राचीन ज्ञान हमें आज की जटिलताओं से निपटने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

संत कबीर:

संत कबीर 15वीं शताब्दी के एक प्रमुख संत, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी कविताओं और दोहों के माध्यम से धार्मिक और सामाजिक समाजवाद का विरोध किया और सच्चे भक्ति मार्ग की प्रशंसा की।

जन्म और परिवेश: कबीर का जन्म सन् 1440 के आस-पास वाराणसी में हुआ था। उनका जन्म और जीवन संबंधित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार, वह एक जुलाहा परिवार में पाए गए थे और उन्हें नीरु और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने पाल-पोस कर बड़ा किया।

धर्म और जाति: कबीर के धार्मिक और जातिवादी पहलु को लेकर अनेक विचार हैं। वह स्वयं जातिवाद और धार्मिक पाखंड के खिलाफ थे और उन्होंने अपनी रचनाओं में इसे स्पष्ट रूप से प्रकट किया। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम धर्म दोनों के प्रतिष्ठित धार्मिक अनुष्ठानों और अंधविश्वासों का समर्थन नहीं किया। उनका मानना था कि ईश्वर से सच्ची भक्ति ही मुख्य है, न कि बाहरी अनुष्ठान या रस्में।

उनकी इस सोच के कारण वह न तो पूरी तरह से हिन्दू माने जाते थे और न ही मुस्लिम। उन्होंने अपने आप को जातिवाद और सम्प्रदायिकता से ऊपर उठाया और सच्चे धार्मिकता की ओर इशारा किया।

आज भी कबीर की शिक्षाएँ और उनके दोहे हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

दोहा क्या होता है?

दोहा एक प्रकार की हिंदी और अवधी कविता है जिसमें प्रत्येक दोहा दो पंक्तियों से मिलकर बना होता है। यह पंक्तियाँ समान चरण में होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 13 से 16 मात्राएँ होती हैं। दोहा आमतौर पर संवाद या संदेश के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और इसमें जीवन, धर्म, नैतिकता और समाज के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होती है।

संत कबीर, रहीम, तुलसीदास आदि महान कवियों ने दोहों का उपयोग किया और उन्होंने अपने विचार और संदेशों को इस साधारण और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया। दोहों की साधारणता और गहरा संदेश उन्हें लोकप्रिय और समय-समय पर प्रासंगिक बनाए रखता

  1. दोहा:

    दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥

    अर्थ और उदाहरण: जब हमें बुखार होता है, हम डॉक्टर के पास जाते हैं, लेकिन स्वस्थ होते ही उसकी सलाहों को नजरअंदाज कर देते हैं। अगर हम स्वस्थता में भी उसकी सलाह पर अमल करें, तो बीमारी का सामना करने की संभावना कम होती है।

  2. दोहा:

    चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाय। वैद्य बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाय॥

    अर्थ और उदाहरण: चिंता से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होते हैं। जैसे किसी काम में असफलता की चिंता से नींद न आना, भूख न लगना आदि। डॉक्टर तो दवा दे सकता है, लेकिन चिंता को दूर करने के लिए आपको स्वयं ही सकारात्मक सोच अपनानी होगी।

  3. दोहा:

    साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय॥

    अर्थ और उदाहरण: हमें ऐसे गुरु की तलाश होनी चाहिए जो हमारी अच्छाई और बुराई को पहचान सके। जैसे कि एक अच्छा मार्गदर्शक हमें सही राह दिखा सकता है और हमें गलतियों से बचा सकता है।

  1. दोहा:

    बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

    अर्थ और उदाहरण: जब हम दूसरों में दोष ढूंढते हैं, हमें अक्सर अपनी खामियों का पता चलता है। जैसे किसी को आलस्य का आरोप लगाने से पहले हमें खुद को देखना चाहिए कि क्या हम भी उसी आलस्य में डूबे हुए हैं।

  2. दोहा:

    आचार का भेद नहीं, देखि परायी औरत। जो जाने राम को, ताको जानिए मोरत॥

    अर्थ और उदाहरण: जो व्यक्ति दूसरी स्त्री को मातृत्व की दृष्टिकोण से देखता है और उस पर वासना नहीं पालता, वही वास्तव में धार्मिक है। जैसे किसी को उसकी बहन या माँ की तरह देखना, न कि उसे वासना की दृष्टिकोण से।

  3. दोहा:

    राम नाम मन दीप धरो, जीवन अंधकार तल। कहत कबीर वह आँधी आई, मिटी बूझ जल॥

    अर्थ और उदाहरण: जीवन में अनेक समस्याएँ आती हैं, लेकिन भगवान के नाम की स्मृति से हम उन समस्याओं का सामना कर सकते हैं। जैसे अंधेरे में दीपक की रोशनी से सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है।

  4. दोहा:

    पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

    अर्थ और उदाहरण: किताबों का अध्ययन करने से ज्ञान तो आता है, लेकिन प्रेम का अध्ययन किताबों से नहीं होता। जो व्यक्ति प्रेम को समझता है, वही असली पंडित है। जैसे माता-पिता का प्रेम शब्दों में नहीं, अनुभव में ही समझा जा सकता है।

  5. दोहा:

    मांगन मरन समान है, मत मांगो कोई भीख। मांगन से मर जाये, तो अच्छा है सदीक॥

    अर्थ और उदाहरण: भीख मांगना और मरना एक समान है। स्वाभिमान से जीवन जीना चाहिए। जैसे किसी व्यक्ति को अपनी मेहनत से कमाई हुई रोजी-रोटी ज्यादा स्वादिष्ट लगती है।

  6. दोहा:

    काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

    अर्थ और उदाहरण: जो काम आज हो सकता है, उसे आज ही कर देना चाहिए। कल क्या होगा, यह किसी को नहीं पता। जैसे किसी छात्र को परीक्षा की तैयारी के लिए आज ही पढ़ाई शुरू कर देनी चाहिए, न कि परीक्षा के एक दिन पहले।

  7. दोहा:

    साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय॥

    अर्थ और उदाहरण: एक सच्चा संत वह है जो सच्चाई को पकड़ता है और असत्य को त्याग देता है। जैसे चलनी में अनाज को रखकर हिलाने पर छोटे छोटे अनज के दाने गिर जाते हैं, लेकिन बड़े दाने रह जाते हैं।