श्री विष्णु चालीसा, हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु की आराधना और स्तुति का एक प्रमुख स्तोत्र है। यह चालीसा 40 श्लोकों का एक संग्रह है, जो भगवान विष्णु के गुणों, उनके अवतारों, और उनकी भक्तों के प्रति किए गए उनके असीम कृपा के कार्यों का वर्णन करता है।
महत्व:
- आध्यात्मिक उन्नति: श्री विष्णु चालीसा का पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नत करता है, भक्ति के मार्ग पर ले जाता है और भगवान विष्णु के साथ गहरा संबंध स्थापित करने में मदद करता है।
- संकटों से रक्षा: इसके पाठ से भक्तों को जीवन की कठिनाइयों और संकटों से रक्षा प्राप्त होती है, क्योंकि भगवान विष्णु संकटमोचन के रूप में जाने जाते हैं।
- धन और समृद्धि: विष्णु चालीसा का पाठ करने से घर में धन और समृद्धि का वास होता है, और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
विधि:
- पवित्र स्थल चुनाव: विष्णु चालीसा का पाठ करने से पहले, एक पवित्र और शांत स्थान चुनें, जहाँ आप बिना किसी विघ्न के ध्यान केंद्रित कर सकें।
- स्नान और तैयारी: पाठ से पहले स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
- दीप प्रज्वलित करें: भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने एक दीपक जलाएं और कुछ पुष्प अर्पित करें।
- शांत चित्त से पाठ करें: श्री विष्णु चालीसा का पाठ एकाग्रता और शांत चित्त से करें। इसे धीरे-धीरे और स्पष्ट रूप से पढ़ें, प्रत्येक श्लोक के अर्थ को समझते हुए।
- आरती और प्रसाद: पाठ के समापन पर, भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद अर्पित करें।
श्री विष्णु चालीसा का हिंदी अर्थ
|| दोहा ||
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
अर्थ ⇒ हे इस सृष्टि के पालनहार ! हे भगवान विष्णु जी ! आप अपने इस भक्त की प्रार्थना को सुन लीजिए। हे प्रभु ! आपका भक्त Shri Vishnu Chalisa के माध्यम से आपका वर्णन कर रहा है। इस वक्त पर कृपा कर ज्ञान दीजिए।
|| चालीसा ||
नमो विष्णु भगवान खरारी ।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ॥१॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी ।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥२॥
अर्थ ⇒ हे भगवान विष्णु ! आप सभी को कष्ट और दुखों से मुक्त करके उनका उद्धार कर देते हैं। हम सब आपको नमन करते हैं। आपकी शक्ति सारे संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली है। जो कि तीनों लोकों में फैली हुई है।
सुन्दर रूप मनोहर सूरत ।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ॥३॥
तन पर पीताम्बर अति सोहत ।
बैजन्ती माला मन मोहत ॥४॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आपका रूप अति सुंदर है जो कि किसी के मन को भी मोह लेता है। आपका स्वभाव बिल्कुल ही सरल और शांत है। आपने पीले रंग के वस्त्रों को धारण कर रखा है। और आपके गले में बैजंती माला अति सुंदर लग रही है।
शंख चक्र कर गदा विराजे ।
देखत दैत्य असुर दल भाजे ॥५॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे ।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥६॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आपके हाथों में शंख, सुदर्शन चक्र और गदा है। जिनके डर से राक्षस और असुर दूर भागते हैं। आप के कारण से ही इस संसार में हमेशा सत्य और धर्म की विजय होती रही है। और काम, क्रोध, मद, लोभ आदि की पराजय होती है।
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन ।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥७॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन ।
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥८॥
हिंदी अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आप ही संतो, ऋषि-मुनियों, सभी सज्जन मनुष्यों की रक्षा करते हैं। उनके मन को प्रसन्न करते हैं और आप ही राक्षसों, असुरों और दुष्टों का विनाश करते हैं। हे प्रभु ! आप ही हम सभी के कष्टों को हरण करके हमें सुख प्रदान करते हैं। और आप ही हमारी कमियों को दूर करके हमें एक सज्जन इंसान बनाते हैं।
पाप काट भव सिन्धु उतारण ।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ॥९॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण ।
केवल आप भक्ति के कारण ॥१०॥
अर्थ ⇒ हे भगवान विष्णु ! आप अपने भक्तों को पापों से मुक्त करके उनका उद्धार करते हैं। और अपने भक्तों के कष्टों को दूर करके उन्हें भवसागर से पार करवाते हैं। हे प्रभु ! आपने कई बार पृथ्वी पर अवतार लेकर धर्म की रक्षा की है। और अपने भक्तों का उद्धार किया है। यह सब आपकी भक्ति के कारण ही हुआ है।
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा ।
तब तुम रूप राम का धारा ॥११॥
भार उतार असुर दल मारा ।
रावण आदिक को संहारा ॥१२॥
अर्थ ⇒ त्रेतायुग में जब पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था। और आपके भक्तों ने जब आप को पुकारा तो आपने श्री राम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया। और श्री राम के रूप में आपने रावण के साथ पूरी राक्षस जाति का विनाश करके इस पृथ्वी के बाहर को हल्का कर दिया।
आप वाराह रूप बनाया ।
हिरण्याक्ष को मार गिराया ॥१३॥
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया ।
चौदह रतनन को निकलाया ॥१४॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आपने वराह का रूप धारण करके हिरण्याक्ष नामक राक्षस को मारकर पृथ्वी की रक्षा की है। और जब पिछले कल्प का अंत समय आया तो आपने मत्स्य का रूप धारण करके चौदह रत्नों को बचाकर आप इस कल्प में लेकर आए है।
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया ।
रूप मोहनी आप दिखाया ॥१५॥
देवन को अमृत पान कराया ।
असुरन को छवि से बहलाया ॥१६॥
अर्थ ⇒ समुंद्र मंथन के दौरान जब असुरों ने अमृतपान के लिए अत्यधिक उत्पात मचाया। तब आपने ही मोहिनी रूप को धारण किया था। और तब आपने देवताओं को अमृत पिलाया और अपने मोहिनी रूप से असुरों को बहला कर रखा।
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया ।
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ॥१७॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया ।
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥१८॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आपने समुंद्र मंथन के लिए कुर्म रूप धारण किया और मंदराचल नामक पर्वत के बाहर को आपने उठाया। जब भगवान शिव शंकर जी ने भस्मासुर को दिए वरदान से बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे। तब भी आपने ही एक स्त्री का रूप धारण करके भस्मासुर का वध किया था।
वेदन को जब असुर डुबाया ।
कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ॥१९॥
मोहित बनकर खलहि नचाया ।
उसही कर से भस्म कराया ॥२०॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु जब ब्रह्मा जी के वेदो को राक्षसों ने चुराकर समुंद्र में डुबो दिया था। तब आप ही हयग्रीव के रूप में आकर फिर से वेदों को लाए थे। हे प्रभु ! स्त्री के रूप में आपने भस्मासुर को नृत्य करवाया। और तभी आपने उसके ही वरदान से उसे भस्म कर दिया।
असुर जलन्धर अति बलदाई ।
शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ॥२१॥
हार पार शिव सकल बनाई ।
कीन सती से छल खल जाई ॥२२॥
अर्थ ⇒ जलंधर नामक राक्षस में बहुत आतंक मचा रखा था। तभी भगवान शिव शंकर जी के साथ भयंकर युद्ध हुआ।लेकिन उनकी पत्नी वृंदा के तप के कारण वे उन्हें पराजित नहीं कर पाए। जिससे माता सती बहुत परेशान हो गई।
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी ।
बतलाई सब विपत कहानी ॥२३॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी ।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥२४॥
अर्थ ⇒ और जब माता सती ने आपको याद किया और आपको सारी कहानी को बताया। तब आपने वृंदा की तपस्या को भंग करने के लिए जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के पास गए।
देखत तीन दनुज शैतानी ।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ॥२५॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी ।
हना असुर उर शिव शैतानी ॥२६॥
अर्थ ⇒ वृंदा ने जब आपको देखा तो वह भ्रम में पड़ गई। और अपनी तपस्या को छोड़कर आपके पास आ गई। हे प्रभु ! आपने माता वृंदा के स्पर्श की गलती को आपने स्वीकार भी किया है। और उन्हें माता तुलसी के रूप में सदैव पूजने का आशीर्वाद भी दिया है।
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे ।
हिरणाकुश आदिक खल मारे ॥२७॥
गणिका और अजामिल तारे ।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥२८॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आपने अपने भक्त पहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह के अवतार में आकर हिरण्यकश्यप का वध किया है। आपने अपने सभी भक्तों की रक्षा करके उनका उद्धार किया है। और उन्हें भवसागर से पार किया है।
हरहु सकल संताप हमारे ।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे ॥२९॥
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे ।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥३०॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! कृपया आप हमारे दुखों और संकट को दूर करके अपना आशीर्वाद हम पर बनाए रखें। हम सब हर रोज आपके दर्शन करते हैं। आप अपने सभी याचकों, निर्धन लोगों और अपने भक्तों को का हमेशा भला करते हैं।
चाहता आपका सेवक दर्शन ।
करहु दया अपनी मधुसूदन ॥३१॥
जानूं नहीं योग्य जब पूजन ।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥३२॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आपका यह भक्तों हमेशा आपके दर्शन की चाहत रखता है। और आप से अपने इस भक्त पर आशीर्वाद बनाए रखने की कृपा करता है। मुझे तप और यज के बारे में ज्ञान नहीं है मैं सिर्फ आपका ध्यान रखता हूं, आपका सिमरन करता हूं।
शीलदया सन्तोष सुलक्षण ।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ॥३३॥
करहुं आपका किस विधि पूजन ।
कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥३४॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! अपने इस भक्त पर दया करें। मुझे व्रत आदि की विधि के बारे में ज्ञान नहीं है। मैं अज्ञानी किस विधि से आप की पूजा अर्चना करूं मेरी अज्ञानता के कारण मुझसे कोई भूल ना हो जाए। जिससे मुझे बहुत दुख होगा।
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण ।
कौन भांति मैं करहु समर्पण ॥३५॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई ।
हर्षित रहत परम गति पाई ॥३६॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! किस विधि से मैं आपको प्रणाम करूं, किस विधि से मै आप का सुमिरन करूं और किस तरह से मैं स्मरण करूं कृपया मुझे ज्ञान दीजिए। सभी देवता और ऋषि-मुनियों ने सदैव आपकी सेवा की है। और इससे उन्हें परम हर्ष की प्राप्ति हुई है।
दीन दुखिन पर सदा सहाई ।
निज जन जान लेव अपनाई ॥३७॥
पाप दोष संताप नशाओ ।
भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥३८॥
अर्थ ⇒ हे प्रभु ! आपने हमेशा से ही दीन दुखियों पर अपनी कृपा बरसाए है। और अपने सभी भक्तों को अपनाया है। आप हमारे सभी पाप व दोषों को दूर करके सांसारिक बंधन से मुक्त कर हम सबका उद्धार करो।
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ ।
निज चरनन का दास बनाओ ॥३९॥
निगम सदा ये विनय सुनावै ।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥४०॥
अर्थ ⇒ आप हम सबको अपने आशीर्वाद से संतान व संपत्ति का सुख देकर अपने चरणों का दास बना लीजिए। निगम हमेशा यही प्रार्थना करता है कि जो भी यह Shri Vishnu Chalisa के पाठ का गायन करता है। और दूसरों को भी सुनाता है। उसे सदैव सुख की प्राप्ति होती है।
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