छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680) भारतीय इतिहास में एक प्रेरणादायक योद्धा और जननायक थे। उन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की और मुगलों के विरुद्ध अनेक सफल युद्ध लड़े। शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्ध नीति का प्रयोग करके बड़े-बड़े साम्राज्यों को चुनौती दी। उनका जीवन न्याय, प्रजा के प्रति प्रेम और समाज में समानता लाने की दिशा में समर्पित था। उनके शासन काल में धर्म और संस्कृति का संरक्षण भी महत्वपूर्ण पहलू था। शिवाजी महाराज की जयंती, उनके आदर्शों और योगदान को याद करने का एक अवसर है।
छत्रपति शिवाजी महाराज को उपाधि “छत्रपति” 1674 में रायगढ़ में उनके राज्याभिषेक के समय मिली। यह समारोह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें उन्हें मराठा साम्राज्य का सम्राट घोषित किया गया था। इस उपाधि का अर्थ है “छाया प्रदान करने वाला स्वामी”, जो उनके राजा के रूप में उनकी प्रजा के प्रति संरक्षण और देखभाल के भाव को दर्शाता है।
शिवाजी महाराज को यह उपाधि उनके नेतृत्व, वीरता, और प्रजा के प्रति उनके समर्पण के कारण दी गई थी। उन्होंने मुगल साम्राज्य के विरुद्ध सफलतापूर्वक युद्ध कि
जयंती का महत्व
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती प्रतिवर्ष 19 फरवरी को मनाई जाती है। यह दिन उनके जन्म की वर्षगांठ के रूप में पूरे भारत में विशेषकर महाराष्ट्र में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती भारतीय इतिहास में उनके अद्वितीय योगदान और नेतृत्व को मनाने के लिए मनाई जाती है। इस दिन, लोग उनकी वीरता, न्यायप्रियता, और प्रजा के प्रति उनकी समर्पण भावना को याद करते हैं। यह जयंती सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व रखती है क्योंकि यह समाज में एकता, देशभक्ति, और साहस की भावनाओं को प्रेरित करती है। शिवाजी महाराज की जयंती के माध्यम से, युवा पीढ़ी को उनकी महान विरासत और आदर्शों के बारे में पता चलता है, जिससे वे उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें।
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर विशेष आयोजन और रीति-रिवाज में शामिल हैं: प्रभातफेरी, भव्य शोभायात्रा, उनके समाधि और मूर्तियों पर पुष्पांजलि अर्पण, और शिवाजी महाराज के जीवन और उनके कार्यों पर आधारित नाटक और कविता पाठ का आयोजन। इस दिन स्कूलों और सार्वजनिक संस्थाओं में भी विविध कार्यक्रम किए जाते हैं जैसे कि भाषण, निबंध लेखन प्रतियोगिता, और कला प्रदर्शनी।
छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता
छत्रपति शिवाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्धनीति का प्रयोग कर अनेक विजय प्राप्त की। उनकी रणनीतियाँ सरप्राइज अटैक्स और भौगोलिक ज्ञान पर आधारित थीं। प्रसिद्ध युद्धों में सिंहगढ़ का युद्ध और पुरंदर की संधि शामिल हैं। उन्होंने दुर्ग निर्माण और नौसेना का भी सशक्तिकरण किया।
मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने 17वीं सदी में विभिन्न युद्धों के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने रायगढ़, तोरणा, तंजावुर, कल्याण, प्रतापगढ़, पवन खंड, सोलापुर, पुरंदर और उमरगढ़ में महत्वपूर्ण युद्ध लड़े। इन युद्धों ने मराठा साम्राज्य को मजबूती प्रदान की और शिवाजी महाराज के गुरिल्ला युद्ध तकनीकों को प्रसिद्ध किया। इन युद्धों के परिणामस्वरूप, शिवाजी महाराज ने कई क्षेत्रों में विजय प्राप्त की और मुगल, आदिलशाही तथा अन्य स्थानीय राज्यों के विरुद्ध सफलता हासिल की। उनकी विजयों ने मराठा साम्राज्य के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
रायगढ़ का युद्ध (1646)
युद्ध किसके मध्य हुआ: रायगढ़ का युद्ध 1646 ई. में मराठा साम्राज्य के श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सल्तनत के जनरल मुल्ला अली के बीच लड़ा गया।
तोरणा की लड़ाई (1647)
युद्ध किसके मध्य हुआ: तोरणा की लड़ाई 1647 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेना के बीच लड़ी गई थी।
तंजावुर की लड़ाई (1656)
युद्ध किसके मध्य हुआ: तंजावुर की लड़ाई 1656 ई. में मराठा साम्राज्य के ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ और मदुरै के ‘नायक राजा’ के बीच लड़ी गई थी।
कल्याण की लड़ाई (1657)
युद्ध किसके मध्य हुआ: कल्याण की लड़ाई 1657 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सेना के बीच लड़ी गई
प्रतापगढ़ का युद्ध (1659)
युद्ध किसके मध्य हुआ: प्रतापगढ़ का युद्ध 1659 ई. में छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेनापति अफजल खान के मध्य हुआ ।
पवन खंड की लड़ाई (1660)
युद्ध किसके मध्य हुआ: पवन खंड की लड़ाई 1660 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति बाजी प्रभु देशपांडे और आदिलशाही सेना के जनरल सिद्दी मसूद के बीच लड़ी गई थी।
सोलापुर की लड़ाई (1664)
युद्ध किसके मध्य हुआ: सोलापुर की लड़ाई 1664 ई. में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही सेना के बीच लड़ी गई थी।
पुरंदर की संधि (1665)
युद्ध किसके मध्य हुआ: पुरंदर की संधि 1665 ई. में पुरंदर किले में मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और आमेर महाराजा जय सिंह प्रथम के बीच हुई।
उमरगढ़ की लड़ाई (1666)
युद्ध किसके मध्य हुआ: उमरगढ़ की लड़ाई 1666 ई. में उमरगढ़ किले के पास मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और मुग़ल सेना के बीच लड़ी गई थी।
शिंदे वंश के साथ युद्ध (1670-71)
युद्ध किसके मध्य हुआ: शिवाजी महाराज और शिंदे वंश के बीच यह युद्ध 1670 ई. से 1671 ई. तक चला।
बरार और खानदेश की विजय (1673-74)
युद्ध किसके मध्य हुआ: इस युद्ध में, शिवाजी महाराज ने बरार और खानदेश क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। यह लड़ाई 1673 ई. से 1674ई. तक चली।
शिवाजी महाराज की गुरिल्ला युद्ध शैली
17वीं सदी में शिवाजी महाराज ने मुगल सेना के विरुद्ध सफलतापूर्वक युद्ध लड़ने के लिए गुरिल्ला युद्ध शैली का इस्तेमाल किया। गुरिल्ला शब्द का अर्थ है ‘छोटे दल’। शिवाजी ने पहाड़ी क्षेत्रों की भूगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल एक लघु तथा चुस्त-दुरुस्त मराठा सेना तैयार की थी।
ये सैनिक तेजी से चलने और लड़ने में प्रशिक्षित थे। वे अकस्मात मुगल सेना पर हमला करते और तुरंत पहाड़ों में वापस लौट जाते और छिप जाते। रात के समय छिपकर हमला करना भी इन योद्धाओं की एक खासियत थी। शिवाजी की सेना में तोपखाना नहीं था, इसलिए ये योद्धा तलवारबाजी और लघु हथियारों के इस्तेमाल में निपुण थे।
गुरिल्ला युद्ध शैली से त्रस्त होकर मुगल सेना पूरी तरह से असहाय हो गई। यह शैली आज भी सैन्य रणनीति की एक महत्वपूर्ण विधा के रूप में जानी जाती है। वीर शिवाजी ने अपनी इस युद्ध कौशल के माध्यम से देश की आजादी के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शिक्षा और प्रेरणा
छत्रपति शिवाजी महाराज से हमें नेतृत्व, साहस, और न्याय के महत्व की शिक्षा मिलती है। वे हमें सिखाते हैं कि अडिग निष्ठा और दृढ़ संकल्प के साथ किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। आज के समय में उनकी प्रासंगिकता यह है कि हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए नैतिकता और ईमानदारी का मार्ग अपनाना चाहिए और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए कार्य करना चाहिए।
छत्रपति शिवाजी महाराज की नीतियों में जाति भेदभाव के खिलाफ कठोर नीतियां शामिल थीं। उन्होंने समाज के सभी वर्गों के लोगों को समान अवसर दिए और उन्हें अपने प्रशासन में उच्च पदों पर नियुक्त किया। उनका यह दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है, जहां समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।