सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा – राजा हरिश्चंद्र – Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha

सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा – राजा हरिश्चंद्र – Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha

इस कहानी में, सतयुग के समय में एक कुम्हार के बर्तन कच्चे रह जाने की समस्या का समाधान एक बच्चे की बलि से सुझाया जाता है। लेकिन जब बच्चे की मां गणेश जी से प्रार्थना करती है, बच्चा सुरक्षित बच जाता है। इस घटना के बाद से महिलाएं सकट चौथ का व्रत अपने परिवार की खुशहाली और सुरक्षा के लिए करती हैं।

व्रत कथा

प्रथम कथा
कहते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई।

उस पर पुजारी ने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से ही यह समस्या दूर हो जाएगी। इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर आंवा में डाल दिया। वह सकट चौथ का दिन था।

काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की। उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था।

इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंच पूरी कहानी बताई। इसके पश्चात राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं।