इस प्रेरक कथा में, हनुमानजी श्रीराम से कहते हैं कि यदि वे लंका न जाते, तो उनके जीवन में बड़ी कमी रह जाती। विभीषण से मिलकर और अशोक वाटिका में सीताजी का पता लगाकर, हनुमानजी को यह समझ आया कि ईश्वर जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हम सब निमित्त मात्र हैं और संसार में जो कुछ भी होता है, वह ईश्वरीय इच्छा से होता है।
व्रत कथा
हम सोचते है, मैं ना होता तो क्या होता?
पर हनुमान जी, प्रभु श्रीराम से कहते है…
प्रभु, यदि मैं लंका न जाता, तो मेरे जीवन में बड़ी कमी रह जाती। विभीषण का घर जब तक मैंने नही देखा था, तब तक मुझे लगता था, कि लंका में भला सन्त कहाँ मिलेंगे…
“लंका निसिचर निकर निवासा, इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा”
प्रभु, मैं तो समझता था कि सन्त तो भारत में ही होते हैं। लेकिन जब मैं लंका में सीताजी को ढूंढ नहीं सका और विभीषण से भेंट होने पर उन्होंने उपाय बता दिया, तो मैंने सोचा कि अरे, जिन्हें मैं प्रयत्न करके नहीं ढूँढ सका, उन्हें तो इन लंका वाले सन्त ने ही बता दिया। शायद प्रभु ने यही दिखाने के लिए भेजा था कि इस दृश्य को भी देख लो।
और प्रभु, अशोक वाटिका में जिस समय रावण आया और रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि अब मुझे कूदकर इसकी तलवार छीन कर इसका ही सिर काट लेना चाहिए, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मन्दोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर मैं गदगद् हो गया।
ओह प्रभु, आपने कैसी शिक्षा दी! यदि मैं कूद पड़ता, तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो क्या होता? बहुधा व्यक्ति को ऐसा ही भ्रम हो जाता है। मुझे भी लगता कि, यदि मैं न होता, तो सीताजी को कौन बचाता? पर आप कितने बड़े कौतुकी हैं? आपने उन्हें बचाया ही नहीं, बल्कि बचाने का काम रावण की उस पत्नी को ही सौंप दिया, जिसको प्रसन्नता होनी चाहिए कि सीता मरे, तो मेरा भय दूर हो। तो मैं समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। किसी का कोई महत्व नहीं है।
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है, तो मैं समझ गया कि यहाँ तो बड़े सन्त हैं। मैं आया और यहाँ के सन्त ने देख लिया। पर जब उसने कहा कि वह बन्दर लंका जलायेगा, तो मैं बड़ी चिन्ता में पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा नहीं और त्रिजटा कह रही है, तो मैं क्या करूँ? पर प्रभु, बाद में तो मुझे सब अनुभव हो गया।
“रावण की सभा में इसलिए बँधकर रह गया कि करके तो मैंने देख लिया, अब जरा बँधके देखूं , कि क्या होता है। जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिए चले तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, पर जब विभीषण ने आकर कहा – दूत को मारना अनीति है, तो मैं समझ गया कि देखो, मुझे बचाना है, तो प्रभु ने यह उपाय कर दिया। सीताजी को बचाना है, तो रावण की पत्नी मन्दोदरी को लगा दिया। मुझे बचाना था, तो रावण के भाई को भेज दिया।
प्रभु, आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बन्दर को मारा तो नहीं जायेगा, पर पूँछ में कपड़ा-तेल लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाय, तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली सन्त त्रिजटा की ही बात सच थी। लंका को जलाने के लिए मैं कहाँ से घी, तेल, कपड़ा लाता, कहाँ आग ढूँढता! वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा लिया। जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !
इसलिए यह याद रखें, कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब इश्वरीय बिधान है। हम आप सब तो केवल निमित्त मात्र हैं।



I carry on listening to the news update talk about getting boundless online grant applications so I have been looking around for the best site to get one. Could you tell me please, where could i acquire some?
Some times its a pain in the ass to read what people wrote but this web site is very user friendly! .
You are my inspiration , I possess few web logs and occasionally run out from to brand.