बुध प्रदोष व्रत कथा – Budh Pradosh Vrat Katha

बुध प्रदोष व्रत कथा – Budh Pradosh Vrat Katha

प्राचीन काल की इस कथा में एक नवविवाहित पुरुष अपनी पत्नी को ससुराल से विदा कराकर ले जाने का निश्चय करता है। उसने निश्चय किया कि वह बुधवार के दिन ही ऐसा करेगा, भले ही उसके ससुराल वालों ने उसे समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराना शुभ नहीं होता। रास्ते में एक अजीबोगरीब घटना घटित होती है जब पत्नी को प्यास लगती है और उसका पति पानी लेने जाता है। वापस आने पर वह देखता है कि उसकी पत्नी एक अन्य पुरुष के साथ हंसी-मजाक कर रही है, जो उससे हूबहू मिलता है। इससे भ्रम और झगड़ा पैदा होता है।

जब एक सिपाही पूछता है कि इन दोनों में से कौन उसका असली पति है, पत्नी असमंजस में पड़ जाती है। परिस्थिति का सामना करते हुए, पुरुष भगवान शिव से प्रार्थना करता है, अपनी गलती की माफी मांगता है, और वादा करता है कि वह भविष्य में कभी ऐसी गलती नहीं करेगा। उसकी प्रार्थना के जवाब में, दूसरा पुरुष अदृश्य हो जाता है, और वह अपनी पत्नी के साथ सकुशल घर पहुंच जाता है। उस दिन से, पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार प्रदोष व्रत रखने लगते हैं। इस कथा के माध्यम से भगवान शिव की महिमा और भक्तों पर उनकी कृपा का संदेश प्रसारित होता है।

व्रत कथा

वार के अनुसार जो प्रदोष व्रत करते हैं, उसी के अनुरूप उसका फल प्राप्त होता है। प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी एवं सुखी बनाता है। बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत करने से सर्व कामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत में हरी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। शंकर शिव जी की आराधना धूप, बेल पत्र आदि से करनी चाहिए।

बुध प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ। विवाह के 2 दिनों बाद उसकी पत्‍नी मायके चली गई। कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्‍नी को लेने उसके यहां गया। बुधवार को जब वह पत्‍नी के साथ लौटने लगा तो ससुराल पक्ष ने उसे रोकने का प्रयत्‍न किया कि विदाई के लिए बुधवार शुभ नहीं होता। लेकिन वह नहीं माना और पत्‍नी के साथ बैल गाड़ी में चल पड़ा। विवश होकर सास ससुर ने अपने जमाई और पुत्री को भारी मन से विदा किया।

नगर के बाहर पहुंचने पर पत्‍नी को प्यास लगी। पुरुष लोटा लेकर पानी की तलाश में चल पड़ा। पत्‍नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर बाद पुरुष पानी लेकर वापस लौटा, तब उसने देखा कि उसकी पत्‍नी किसी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही है और उसके लोटे से पानी पी रही है। उसको क्रोध आ गया।

वह निकट पहुंचा तो उसके आश्‍चर्य का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि उस आदमी की सूरत उसी की भांति थी। पत्‍नी भी सोच में पड़ गई। दोनों पुरुष झगड़ने लगे। धीरे धीरे वहां कॉफी भीड़ एकत्रित हो गई और सिपाही भी आ गए। हमशक्ल आदमियों को देख वे भी आश्‍चर्य में पड़ गए।

उन्होंने स्त्री से पूछा- उसका पति कौन है?
वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। तब वह पुरुष शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा- हे भगवान! हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को पत्‍नी को विदा करा लिया। मैं भविष्य में ऐसा कदापि नहीं करूंगा।

जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, दूसरा पुरुष अंतर्ध्यान हो गया। पति-पत्‍नी सकुशल अपने घर पहुंच गए। उस दिन के बाद से पति-पत्‍नी नियमपूर्वक बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत रखने लगे। अत: बुध त्रयोदशी व्रत हर मनुष्य को करना चाहिए।