उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक सुरंग हादसे में 41 मजदूर फंस गए थे। प्रारंभिक 9-10 दिनों तक बचाव अभियान चला, परंतु कोई सफलता नहीं मिली। इस दौरान अनेक बाधाएं आईं और यहां तक कि विशेषज्ञ भी चिंतित हो उठे।
एक ओर जहां सरकार मजदूरों को बचाने के प्रयास में जुटी थी, वहीं स्थानीय लोगों के बीच एक अलग ही चर्चा थी। उनका मानना था कि सुरंग निर्माण स्थल पर मौजूद बाबा बौखनाग के मंदिर को तोड़े जाने के कारण यह हादसा हुआ।
जब बचाव अभियान में कोई प्रगति नहीं हुई, तो कंपनी के अधिकारियों ने बाबा बौखनाग से क्षमा याचना की और मंदिर के पुजारी से विशेष पूजा करवाई। इसके बाद सुरंग के मुख्य द्वार पर बाबा बौखनाग का प्रतीकात्मक मंदिर बनाया गया और पूजा-अर्चना की गई।
इस पूजा के बाद, इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष अर्नोल्ड डिक्स और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भी मंदिर में प्रार्थना की। इसके बाद अभियान में तेजी आई और अंततः सभी मजदूर सुरक्षित बाहर निकाले गए।
बाबा बौखनाग के मंदिर के बारे में मान्यता
बाबा बौखनाग के मंदिर के बारे में मान्यता है कि वे पहाड़ों के देवता हैं। उत्तरकाशी में स्थित इस मंदिर में हर साल हजारों श्रद्धालु आस्था के साथ दर्शन करने आते हैं। स्थानीय लोगों का यह भी विश्वास है कि नवविवाहित और निसंतान दंपत्ति यहां दर्शन करने आते हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।
उत्तरकाशी के निवासी मानते हैं कि हाल ही में घटित दुर्घटना बाबा बौखनाग की असंतोष का परिणाम है। उनका विचार है कि सुरंग निर्माण से पूर्व बाबा बौखनाग के मंदिर की स्थापना होनी चाहिए थी। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सुरंग बनाने के लिए मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया, जिससे बाबा बौखनाग क्रोधित हो उठे और उनके रोष के कारण ही यह भीषण घटना घटी।
कैसे पहुंचे बाबा बौख नाग?
बाबा बौखनाग के मंदिर तक पहुंचने के लिए देहरादून से सिल्क्यारा गांव की दूरी लगभग 135 किमी है। यहां से 4 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।