पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 24 – Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 24

पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 24 – Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 24

व्रत कथा

मणिग्रीव बोला, ‘हे द्विज! विद्वानों से पूर्ण और सुन्दर चमत्कारपुर में धर्मपत्नी के साथ में रहता था। धनाढय, पवित्र आचरण वाला, परोपकार में तत्पर मुझको किसी समय संयोग से दुष्ट बुद्धि पैदा हुई। दुष्ट बुद्धि के कारण मैंने अपने धर्म का त्याग किया, दूसरे की स्त्री का सेवन किया और नित्य अपेय वस्तु का पान किया। चोरी हिंसा में तत्पर रहता था, इसलिए बन्धुओं ने मेरा त्याग किया। उस समय महाबलवान्‌ राजा ने मेरा घर लूट लिया। बाद बचा हुआ जो कुछ धन था उसको बन्धुओं ने ले लिया।

इस प्रकार सभी से तिरस्कृत होने के कारण वन में निवास किया। स्त्री के साथ इस घोर वन में निवास करते हुए मुझ दुरात्मा का नित्य जीवों का वध कर जीवन-निर्वाह होता है। हे ब्रह्मन्‌! इस समय आप मुझ पातकी पर अनुग्रह करें। प्राचीन पुण्य के समूह से आप इस घोर वन में आये हैं।

हे महामुने! स्त्री के साथ मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप उपदेशरूप प्रसाद से कृतार्थ करने के योग्य हैं। जिस उपाय के करने से मेरी तीव्र दरिद्रता इसी क्षण में नष्ट हो जाय और अतुल वैभव को प्राप्त कर यथासुख विचरूँ।

उग्रदेव बोला, ‘हे महाभाग! तुम कृतार्थ हो गये। जो तुमने मेरा अतिथि-सत्कार किया इसलिए इस समय स्त्रीसहित तुमको होनेवाले कल्याण को कहता हूँ। जो बिना व्रत के, बिना तीर्थ के, बिना दान के, बिना प्रयास के तुम्हारी दरिद्रता दूर हो जायगी, ऐसा मैंने विचार किया है।

इस मास के बाद तीसरा श्रीपुरुषोत्तम मास आने वाला है उस पुरुषोत्तम मास में सावधानी के साथ विधिपूर्वक तुम दोनों स्त्री-पुरुष, श्रीपुरुषोत्तम भगवान्‌ को प्रसन्न करने के लिये दीप-दान करना। उस दीप-दान से तुम्हारी यह दरिद्रता जड़ से नष्ट हो जायगी। तिल के तेल से दीप-दान करना चाहिये। विभव के होने पर घृत से दीप-दान करना चाहिये। परन्तु इस समय वन में वास करने के कारण घृत अथवा तेल इनमें से तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है।

हे अनघ! मणिग्रीव! पुरुषोत्तम मास भर स्त्री के साथ नियमपूर्वक इंगुदी के तेल से तुम दीप-दान करना। स्त्री के साथ इस तालाब में नित्य स्नान करके दीप-दान करना। इसी प्रकार तुम इस वन में एक मास व्रत करना। तुम्हारे अतिथिसत्कार से प्रसन्न मैंने यह वेद में कहा हुआ तुम दोनों स्त्री-पुरुष के लिये उपदेश किया है।

विधिहीन भी दीप-दान करने से मनुष्यों को लक्ष्मी की वृद्धि होती है। यदि पुरुषोत्तम मास में विधिपूर्वक दीप-दान किया जाय तो क्या कहना है। वेद में कहे हुए कर्म और अनेक प्रकार के दान पुरुषोत्तम मास में दीप-दान की सोलहवीं कला की भी बराबरी नहीं कर सकते हैं। समस्त तीर्थ, समस्त शास्त्र पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला को नहीं पा सकते हैं। योग, दान, सांखय, समस्त-तन्त्र भी पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला को नहीं पा सकते हैं। कृच्छ्र, चान्द्रायण आदि समस्त व्रत पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला की बराबरी नहीं कर सकते हैं। वेद का प्रतिदिन पाठ करना, गयाश्राद्ध, गोमती नदी के तट का सेवन पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला की बराबरी नहीं कर सकते हैं। हजारों ग्रहण, सैकड़ों व्यतीपात पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला की बराबरी नहीं कर सकते हैं। कुरुक्षेत्र आदि श्रेष्ठ क्षेत्र, दण्डक आदि वन पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला की बराबरी नहीं कर सकते हैं।

हे वत्स! यह अत्यन्त गुप्त व्रत जिस किसी से कहने लायक नहीं है। यह धन, धान्य, पशु, पुत्र, पौत्र और यश को करनेवाला है। वन्ध्या स्त्री के बाँझपन को नाश करनेवाला है और स्त्रियों को सौभाग्य देनेवाला है। राज्य से गिरे हुए राजा को राज्य देनेवाला है और प्राणियों को इच्छानुसार फल देनेवाला है।

यदि कन्या व्रत करती है तो गुणी चिरञ्जीयवी पति को प्राप्त करती है, स्त्री की इच्छा करने वाला पुरुष सुशीला और पतिव्रता स्त्री को प्राप्त करता है। विद्यार्थी विद्या को प्राप्त करता है। सिद्धि को चाहने वाला अच्छी तरह सिद्धि को प्राप्त करता है। खजाना को चाहने वाला खजाना को प्राप्त करता है। मोक्ष को चाहने वाला मोक्ष को प्राप्त करता है। बिना विधि के, बिना शास्त्र के जो पुरुषोत्तम मास में जिस किसी जगह दीप-दान करता है वह इच्छानुसार फल को प्राप्त करता है।

हे वत्स! विधिपूर्वक नियम से जो दीप-दान करता है तो फिर कहना ही क्या है? इसलिये पुरुषोत्तम मास में दीप-दान करना चाहिये। मैंने इस समय यह तीव्र दरिद्रता को नाश करने वाला दीप-दान तुमसे कहा, तुम्हारा कल्याण हो, तुम्हारी सेवा से मैं प्रसन्न हूँ।’

अगस्त्य मुनि बोले, ‘इस प्रकार वह श्रेष्ठ ब्राह्मण मन से दो भुजावाले मुरली को धारण करने वाले श्रीहरि भगवान्‌ का स्मरण करते हुए प्रयाग को गये। वे दोनों अपने आश्रम से उग्रदेव के पीछे जाकर उनके पास कुछ मासपर्यन्त वास करके, प्रसन्न मन हो, दोनों स्त्री-पुरुष उग्रदेव को नमस्कार कर, फिर अपने आश्रम को चले आये।

अपने आश्रम में आकर भक्ति से पुरुषोत्तम में मन लगाकर, ब्राह्मण की भक्ति में तत्पर उन दोनों स्त्री-पुरुष ने दो मास बिताया। दो मास बीत जाने पर श्रीमान्‌ पुरुषोत्तम मास आया, उस पुरुषोत्तम मास में वे दोनों गुरुभक्ति में तत्पर हो दीप-दान को करते हुए, आलस्य को छोड़कर वे दोनों ऐश्वर्य के लिए इंगुदी के तेल से दीप-दान करते रहे। इस प्रकार दीप-दान करते उन दोनों को श्रीपुरुषोत्तम मास बीत गया।

उग्रदेव ब्राह्मण के प्रसाद से शुद्धान्तःकरण होकर समय पर काल के वशीभूत हो इन्द्र की पुरी को गये। वहाँ होनेवाले सुखों को भोग कर पृथिवी पर भारतखण्ड में उग्रदेव के प्रसाद से श्रेष्ठ जन्म को उन दोनों स्त्री-पुरुष ने धारण किया।

पूर्व जन्म में जो तुम मृग की हिंसा में तत्पर मणिग्रीव थे वह वीरबाहु के पुत्र चित्रबाहु नाम से प्रसिद्ध राजा हुए। इस समय यह चन्द्रकला नामक जो तुम्हारी स्त्री है वह पूर्व जन्म में सुन्दरी नाम से तुम्हारी स्त्री थी। पतिव्रत धर्म से यह तुम्हारे अर्धांग की भागिनी है। जो स्त्री पतिव्रता होती हैं वे अपने पति के पुण्य का आधा भाग लेनेवाली होती हैं। श्रीपुरुषोत्तम मास में इंगुदी के तेल से दीप-दान करने से तुमको यह निष्कण्टक राज्य मिला। जो पुरुष श्रीपुरुषोत्तम मास में घृत से अथवा तिल के तेल से अखण्ड दीप-दान करता है तो फिर कहना ही क्या है। पुरुषोत्तम मास में दीप-दान का यह फल कहा है इसमें कुछ सन्देह नहीं है। जो उपवास आदि नियमों से श्रीपुरुषोत्तम मास का सेवन करता है तो उसका कहना ही क्या है।

बाल्मीकि मुनि बोले, ‘इस प्रकार अगस्त्य मुनि राजा चित्रबाहु के पूर्व जन्म का वृत्तान्त कहकर और राजा चित्रबाहु से किए गये सत्कार को लेकर तथा अक्षय आशीर्वाद देकर चले गये।

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये चतुर्विंशोऽध्यायः ॥२४॥

4 Replies to “पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 24 – Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 24”

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