ओम नमः शिवाय में कृत्स्न जीवन, विश्व, सृष्टि का सार समाहित है। इस पवित्र मंत्र का उच्चारण मन को शांति देता है और स्वर्ग की प्राप्ति कराता है। विद्वान् इसे पंचाक्षर मंत्र कहते हैं, क्योंकि इसके पांच अक्षर होते हैं – न, मः, शि, वा, यः।
“ओम” एक पवित्र मंत्र है जिसे हिंदू धर्म में बहुत महत्व दिया गया है। ये ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के प्रतीक हैं और इन तीनों की शक्तियों को मिलाकर ‘ओम’ को उच्चारित किया जाता है।
“नमः” का अर्थ होता है – मैं नमन करता हूँ। इसे उच्चारित करने से हम अपने अहंकार को त्यागते हैं और शिव जी की विनम्रता और दया को स्वीकारते हैं। अपने आत्मा को उनके चरणों में समर्पित करने का यह एक तरीका है।
“शिवाय” तत्व में, “शिव” का अर्थ है कल्याणकारी और “यः” का अर्थ है वह। यानी, वह जो कल्याणकारी है। शिव ही हैं जो सब कुछ है, सब कुछ जिसमें है, और जिससे सब कुछ उत्पन्न होता है।
व्याख्याताओं ने इस मंत्र के प्रत्येक अक्षर को पांच तत्वों – पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, और अग्नि – के प्रतीक के रूप में व्याख्या किया है, जैसे कि ‘नः’ पृथ्वी का प्रतीक है, ‘म’ जल का, ‘श’ आकाश का, ‘वा’ वायु का, और ‘यः’ अग्नि का प्रतीक है।
इस पवित्र मंत्र का उच्चारण करने से आपको अपनी आत्मा के साथ एकता का अनुभव होता है। यह मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मंत्र का जाप करते हुए शिव जी की आराधना करता है, वह समस्त संसारिक स्वार्थों से परे होकर, आत्मा में गहराई तक प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त करता है।
इसलिए, ‘ओम नमः शिवाय’ यह स्वंय एक आत्मा-विकास और भगवान शिव की उपासना का माध्यम है, जिससे व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार के प्रति अधिक बढ़ता है। इस मंत्र का जाप करने से आप अपनी आत्मा को अनन्तता के साथ मिल सकते हैं। यह मंत्र एक सच्चे जीवन मार्ग को दर्शाता है, जो शांति, सुख, और अनन्तता की ओर ले जाता है।