|| दोहा ||
श्री गुरु गणनायक सिमर,
शारदा का आधार ।
कहूँ सुयश श्रीनाथ का,
निज मति के अनुसार ।
श्री गुरु गोरक्षनाथ के चरणों में आदेश ।
जिनके योग प्रताप को ,
जाने सकल नरेश ।
|| चौपाई ||
जय श्रीनाथ निरंजन स्वामी,
घट घट के तुम अन्तर्यामी ।
दीन दयालु दया के सागर,
सप्तद्वीप नवखण्ड उजागर ।
आदि पुरुष अद्वैत निरंजन,
निर्विकल्प निर्भय दुःख भंजन ।
अजर अमर अविचल अविनाशी,
ऋद्धि सिद्धि चरणों की दासी ।
बाल यती ज्ञानी सुखकारी,
श्री गुरुनाथ परम हितकारी ।
रूप अनेक जगत में धारे,
भगत जनों के संकट टारे ।
सुमिरण चौरंगी जब कीन्हा,
हुये प्रसन्न अमर पद दीन्हा ।
सिद्धों के सिरताज मनावो,
नव नाथों के नाथ कहावो ।
जिनका नाम लिये भव जाल,
आवागमन मिटे तत्काल ।
आदि नाथ मत्स्येन्द्र पीर,
घोरम नाथ धुन्धली वीर ।
कपिल मुनि चर्पट कण्डेरी,
नीम नाथ पारस चंगेरी ।
परशुराम जमदग्नी नन्दन,
रावण मार राम रघुनन्दन ।
कंसादिक असुरन दलहारी,
वासुदेव अर्जुन धनुधारी ।
अचलेश्वर लक्ष्मण बल बीर,
बलदाई हलधर यदुवीर ।
सारंग नाथ पीर सरसाई,
तुङ़्गनाथ बद्री बलदाई ।
भूतनाथ धारीपा गोरा,
बटुकनाथ भैरो बल जोरा ।
वामदेव गौतम गंगाई,
गंगनाथ घोरी समझाई ।
रतन नाथ रण जीतन हारा,
यवन जीत काबुल कन्धारा ।
नाग नाथ नाहर रमताई,
बनखंडी सागर नन्दाई ।
बंकनाथ कंथड़ सिद्ध रावल,
कानीपा निरीपा चन्द्रावल ।
गोपीचन्द भर्तृहरी भूप,
साधे योग लखे निज रूप ।
खेचर भूचर बाल गुन्दाई,
धर्म नाथ कपली कनकाई ।
सिद्धनाथ सोमेश्वर चण्डी,
भुसकाई सुन्दर बहुदण्डी ।
अजयपाल शुकदेव व्यास,
नासकेतु नारद सुख रास ।
सनत्कुमार भरत नहीं निंद्रा,
सनकादिक शारद सुर इन्द्रा ।
भंवरनाथ आदि सिद्ध बाला,
ज्यवन नाथ माणिक मतवाला ।
सिद्ध गरीब चंचल चन्दराई,
नीमनाथ आगर अमराई ।
त्रिपुरारी त्र्यम्बक दुःख भंजन,
मंजुनाथ सेवक मन रंजन ।
भावनाथ भरम भयहारी,
उदयनाथ मंगल सुखकारी ।
सिद्ध जालन्धर मूंगी पावे,
जाकी गति मति लखी न जावे ।
ओघड़देव कुबेर भण्डारी,
सहजई सिद्धनाथ केदारी ।
कोटि अनन्त योगेश्वर राजा,
छोड़े भोग योग के काजा ।
योग युक्ति करके भरपूर,
मोह माया से हो गये दूर ।
योग युक्ति कर कुन्ती माई,
पैदा किये पांचों बलदाई ।
धर्म अवतार युधिष्ठिर देवा,
अर्जुन भीम नकुल सहदेवा ।
योग युक्ति पार्थ हिय धारा,
दुर्योधन दल सहित संहारा ।
योग युक्ति पंचाली जानी,
दुःशासन से यह प्रण ठानी ।
पावूं रक्त न जब लग तेरा,
खुला रहे यह सीस मेरा ।
योग युक्ति सीता उद्धारी,
दशकन्धर से गिरा उच्चारी ।
पापी तेरा वंश मिटाऊं,
स्वर्ण लङ़्क विध्वंस कराऊँ ।
श्री रामचन्द्र को यश दिलाऊँ,
तो मैं सीता सती कहाऊँं ।
योग युक्ति अनुसूया कीनों,
त्रिभुवन नाथ साथ रस भीनों ।
देवदत्त अवधूत निरंजन,
प्रगट भये आप जग वन्दन ।
योग युक्ति मैनावती कीन्ही,
उत्तम गति पुत्र को दीनी ।
योग युक्ति की बंछल मातू,
गूंगा जाने जगत विख्यातू ।
योग युक्ति मीरा ने पाई,
गढ़ चित्तौड़ में फिरी दुहाई ।
योग युक्ति अहिल्या जानी,
तीन लोक में चली कहानी ।
सावित्री सरसुती भवानी,
पारबती शङ़्कर सनमानी ।
सिंह भवानी मनसा माई,
भद्र कालिका सहजा बाई ।
कामरू देश कामाक्षा योगन,
दक्षिण में तुलजा रस भोगन ।
उत्तर देश शारदा रानी,
पूरब में पाटन जग मानी ।
पश्चिम में हिंगलाज विराजे,
भैरव नाद शंखध्वनि बाजे ।
नव कोटिक दुर्गा महारानी,
रूप अनेक वेद नहिं जानी ।
काल रूप धर दैत्य संहारे,
रक्त बीज रण खेत पछारे ।
मैं योगन जग उत्पति करती,
पालन करती संहृति करती ।
जती सती की रक्षा करनी,
मार दुष्ट दल खप्पर भरनी ।
मैं श्रीनाथ निरंजन दासी,
जिनको ध्यावे सिद्ध चौरासी ।
योग युक्ति विरचे ब्रह्मण्डा,
योग युक्ति थापे नवखण्डा ।
योग युक्ति तप तपें महेशा,
योग युक्ति धर धरे हैं शेषा ।
योग युक्ति विष्णू तन धारे,
योग युक्ति असुरन दल मारे ।
योग युक्ति गजआनन जाने,
आदि देव तिरलोकी माने ।
योग युक्ति करके बलवान,
योग युक्ति करके बुद्धिमान ।
योग युक्ति कर पावे राज,
योग युक्ति कर सुधरे काज ।
योग युक्ति योगीश्वर जाने,
जनकादिक सनकादिक माने ।
योग युक्ति मुक्ती का द्वारा,
योग युक्ति बिन नहिं निस्तारा ।
योग युक्ति जाके मन भावे,
ताकी महिमा कही न जावे ।
जो नर पढ़े सिद्ध चालीसा,
आदर करें देव तेंतीसा ।
साधक पाठ पढ़े नित जोई,
मनोकामना पूरण होई ।
धूप दीप नैवेद्य मिठाई,
रोट लंगोट को भोग लगाई ।
|| दोहा ||
रतन अमोलक जगत में,
योग युक्ति है मीत ।
नर से नारायण बने,
अटल योग की रीत ।
योग विहंगम पंथ को,
आदि नाथ शिव कीन्ह ।
शिष्य प्रशिष्य परम्परा,
सब मानव को दीन्ह ।
प्रातः काल स्नान कर,
सिद्ध चालीसा ज्ञान ।
पढ़ें सुने नर पावही,
उत्तम पद निर्वाण ।