भारतीय पूजा पद्धति में आरती का विशेष स्थान है। आरती के बाद कुछ विशेष मंत्र बोले जाते हैं, जिनका गहरा आध्यात्मिक अर्थ और महत्व है। इनमें से “त्वमेव माता च पिता त्वमेव” और “कर्पूरगौरं मंत्र” प्रमुख हैं। आइए इन मंत्रों के अर्थ, महत्व और उत्पत्ति को समझते हैं।
चाहे मंदिर हो या हमारा घर, पूजा के दौरान कुछ विशेष मंत्रों का उच्चारण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक देवी और देवता के लिए विशिष्ट मंत्र होते हैं, किन्तु आरती के समापन पर, यह विशेष मंत्र विशेषतः जपा जाता है।
आइए ऐसे 2 महत्वपूर्ण मंत्रों के बारे में जानते हैं, जिनका जप पूजा के समापन पर किया जाता है।
ॐ “त्वमेव माता च पिता त्वमेव” मंत्र ॐ
पूरा मंत्र:
“त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव।”
tvameva mātā ca pitā tvameva, tvameva bandhuśca sakhā tvameva।
tvameva vidyā ca draviṇama tvameva, tvameva sarvamama deva devaḥ।।
अर्थ:
- त्वमेव माता च पिता त्वमेव: तू ही मेरी माँ है और तू ही मेरे पिता है।
- त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव: तू ही मेरा भाई और मित्र है।
- त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव: तू ही मेरी विद्या और धन है।
- त्वमेव सर्वं मम देव देव: तू ही मेरे सब कुछ है, हे देवों के देव।
महत्व और उत्पत्ति:
यह मंत्र भक्त और ईश्वर के बीच के अटूट संबंध को दर्शाता है। यह भक्त के समर्पण और ईश्वर के प्रति अपनी निर्भरता को व्यक्त करता है। इस मंत्र की उत्पत्ति भारतीय वैदिक ग्रंथों में मिलती है, जो सिखाता है कि सच्ची भक्ति में ईश्वर ही हमारे सभी संबंधों और आवश्यकताओं का स्रोत हैं।
ॐ “कर्पूरगौरं मंत्र” ॐ
पूरा मंत्र:
“कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेंद्रहारम्। सदा वसंतं हृदयारविंदे, भवं भवानी सहितं नमामि।”
“कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेंद्रहारम्। सदा वसंतं हृदयारविंदे, भवं भवानी सहितं नमामि।”
अर्थ:
- कर्पूरगौरं: जो कपूर की तरह उज्ज्वल हैं।
- करुणावतारं: करुणा के अवतार।
- संसारसारं: संसार का सार।
- भुजगेंद्रहारम्: जिन्होंने सर्प को हार के रूप में धारण किया है।
- सदा वसंतं हृदयारविंदे: हमेशा हृदय के कमल में वास करने वाले।
- भवं भवानी सहितं नमामि: भवानी के साथ भव (शिव) को मैं नमन करता हूँ।
महत्व और उत्पत्ति:
“कर्पूरगौरं मंत्र” भगवान शिव की स्तुति का एक शक्तिशाली मंत्र है। यह मंत्र भगवान शिव के उज्ज्वल, करुणामय और संसार के सार रूप की पूजा करता है। इसकी उत्पत्ति हिन्दू धर्मग्रंथों में है और यह भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की ओर ले जाने का मार्ग दिखाता है।
ये मंत्र न केवल भारतीय संस्कृति के गहरे आध्यात्मिक तत्वों को प्रकट करते हैं बल्कि वे भक्तों को दैनिक जीवन में ईश्वर के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करने का मार्ग भी दिखाते हैं।