लैंसेट में प्रकाशित ताजा अध्ययन “ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीजेज, इंजरीज, और रिस्क फैक्टर्स स्टडी (GBD) 2021” की हालिया रिपोर्ट ने प्रजनन संबंधी महत्वपूर्ण संकेतकों पर व्यापक डेमोग्राफिक आकलन प्रस्तुत किया है, जो 1950 से 2021 तक के डेटा और 2100 तक की भविष्यवाणियों को कवर करता है। यह रिपोर्ट वैश्विक, क्षेत्रीय, और राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दरों के विश्लेषण पर केंद्रित है और इसका उद्देश्य भविष्य में आने वाली सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय, और भूराजनीतिक चुनौतियों की योजना बनाने में मदद करना है। इसके लिए विभिन्न नीतिगत परिदृश्यों के आधार पर प्रजनन दरों के अनुमान और भविष्यवाणियाँ महत्वपूर्ण हैं। आइए इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्षों को सरल हिंदी भाषा में समझते हैं, जिससे हर कोई इस जटिल लेकिन महत्वपूर्ण जानकारी को आसानी से समझ सके।
वैश्विक स्तर पर प्रजनन दरों का सटीक आंकलन और इसके भविष्य के रुझानों को समझना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके परिवर्तन सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और भूराजनीतिक चुनौतियों की योजना बनाने में मदद करते हैं। प्रजनन दरों के अनुमान और भविष्यवाणियां संसाधन और स्वास्थ्य-देखभाल की आवश्यकताओं, श्रम आपूर्ति, शिक्षा, लिंग समानता, और पारिवारिक नियोजन और समर्थन से जुड़ी नीतियों को सूचित करने के लिए आवश्यक हैं। 2021 ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज़, इंजरीज़, और रिस्क फैक्टर्स स्टडी (GBD) ने 1950 से 2021 तक और 2100 तक की भविष्यवाणी के लिए वैश्विक, क्षेत्रीय, और राष्ट्रीय स्तरों पर प्रजनन संबंधी प्रमुख संकेतकों का अद्यतन और व्यापक डेमोग्राफिक मूल्यांकन प्रदान किया।
प्रजनन दरों का अनुमान और भविष्यवाणी: डेटा के आधार पर सरल विवरण
कैसे हुआ डेटा संग्रहण?
- 8709 देश-वर्षों के जीवन और नमूना पंजीकरणों से,
- 1455 सर्वेक्षणों और जनगणनाओं से,
- और 150 अन्य स्रोतों से डेटा एकत्रित किया गया।
डेटा से क्या पता चला?
- विशेषज्ञों ने पाया कि 10 से 54 वर्ष की महिलाओं की प्रजनन दर (ASFR) क्या है।
- इन ASFR को जोड़कर, कुल प्रजनन दर (TFR) का पता लगाया गया।
भविष्य की दरों का अनुमान कैसे लगाया गया?
- IHME मॉडल ने भविष्य में 50 वर्ष की आयु में महिलाओं द्वारा जन्मे बच्चों की संख्या (CCF50) पर आधारित भविष्यवाणियाँ की।
- शिक्षा, गर्भनिरोधक की पूरी हुई जरूरत, जनसंख्या घनत्व, और 5 वर्ष से कम आयु की मृत्यु दर जैसे कारकों का उपयोग किया गया।
क्या खास परिणाम मिले?
- 1950 से 2021 तक वैश्विक TFR 4.84 से घटकर 2.23 हो गई।
- 2100 तक वैश्विक TFR के 1.59 तक गिरने की उम्मीद है।
इस डेटा के आधार पर, हम समझ सकते हैं कि प्रजनन दर में वैश्विक स्तर पर गिरावट आ रही है, और भविष्य में यह और भी घटने की संभावना है। यह जानकारी सरकारों और संगठनों को बेहतर नीतियाँ और योजनाएँ बनाने में मदद करती है, ताकि वे जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, और पारिवारिक नियोजन संबंधी चुनौतियों का सामना कर सकें।
इस डेटा का विश्लेषण यह भी दिखाता है कि विश्वभर में जनसंख्या की उम्रदराजी और कामकाजी जनसंख्या में कमी आ रही है, जिससे विभिन्न समाजों और अर्थव्यवस्थाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। यह स्थिति विकसित देशों में विशेष रूप से गंभीर हो सकती है, जहां प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
दूसरी ओर, कुछ क्षेत्र, विशेषकर सब-सहारा अफ्रीका, जहां प्रजनन दरें अभी भी अधिक हैं, भविष्य में अपनी जनसंख्या में वृद्धि देख सकते हैं। इसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और आर्थिक अवसरों में निवेश करने की जरूरत होगी, ताकि वे इस जनसंख्या वृद्धि का सकारात्मक रूप से सामना कर सकें।
समग्र रूप से, यह डेटा हमें यह समझने में मदद करता है कि आने वाले दशकों में जनसंख्या डायनामिक्स कैसे विकसित हो सकती है, और हमें इन परिवर्तनों के लिए तैयारी करने में सहायता करता है। इससे हमें यह भी समझने में मदद मिलती है कि भविष्य में समाज के लिए किस प्रकार के समर्थन और नीतियों की जरूरत होगी, ताकि हर व्यक्ति की भलाई सुनिश्चित की जा सकाने में मदद कर सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां प्रजनन दर की गिरावट के आर्थिक और सामाजिक प्रभावों को समझना जरूरी है। उदाहरण के लिए, जनसंख्या की उम्रदराजी और श्रमबल में कमी की सम्भावना को देखते हुए, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, और रोजगार की नीतियों में समायोजन की आवश्यकता हो सकती है।
निष्कर्ष और इसका आम लोगों के लिए क्या मतलब है:
इस अध्ययन से पता चलता है कि 1950 से 2021 तक वैश्विक कुल प्रजनन दर में महत्वपूर्ण गिरावट आई है, और यह प्रवृत्ति भविष्य में भी जारी रहने की उम्मीद है। 2021 में आधे से अधिक देशों और क्षेत्रों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे थी। भविष्यवाणी के अनुसार, वैश्विक कुल प्रजनन दर 2050 तक 1·83 और 2100 तक 1·59 तक गिरने की संभावना है।
आम लोगों के लिए, इस अध्ययन के निष्कर्षों का यह मतलब है कि दुनिया भर में जनसंख्या की उम्र बढ़ रही है और युवा श्रमिकों की संख्या घट रही है, जिससे आर्थिक और सामाजिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। उच्च आय वाले देशों में जनसंख्या की उम्र बढ़ने और श्रम बल में कमी के कारण, और सबसे गरीब क्षेत्रों में जीवित जन्मों की बढ़ती हिस्सेदारी के कारण, इन बदलावों से विश्वव्यापी आर्थिक और सामाजिक परिणामों का सामना करना पड़ेगा। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल, और पेंशन सिस्टम्स पर इसके व्यापक प्रभाव पड़ेंगे, जिससे सरकारों और समाजों को इन बदलते रुझानों के अनुरूप अपनी नीतियों और योजनाओं को ढालने की आवश्यकता होगी।
विकसित देशों में, जहां प्रजनन दर पहले से ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है, जनसंख्या में गिरावट और वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि के कारण, पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव बढ़ेगा। इसके विपरीत, विकासशील देशों, विशेष रूप से सब-सहारा अफ्रीका में, जहां जीवित जन्मों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, और आवश्यक बुनियादी ढांचे के लिए संसाधनों की जरूरत बढ़ेगी।
आम लोगों के लिए, इन बदलावों का मतलब है कि समाज के हर स्तर पर अधिक समर्थन और अनुकूलन की जरूरत होगी। शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना, लिंग समानता को मजबूत करना, और पारिवारिक नियोजन और मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, इन चुनौतियों का सामना करने के कुछ उपाय हैं।
इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि शिक्षा और गर्भनिरोधक की पहुंच में सुधार, साथ ही प्रजनन-सहायक नीतियाँ, प्रजनन दरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। हालांकि, यहां तक कि इन प्रयासों के सफल क्रियान्वयन के बावजूद, प्रजनन दरों के वैश्विक स्तर पर निम्न बने रहने की संभावना है। इससे यह संकेत मिलता है कि विश्व के कुछ हिस्सों में जनसंख्या वृद्धि के चुनौतियों का सामना करते समय अन्य क्षेत्रों में जनसंख्या में कमी और उम्रदराज जनसंख्या की समस्याओं से निपटना पड़ सकता है।
आम लोगों के लिए, इसका मतलब है कि भविष्य में समाज को और अधिक समावेशी, अनुकूली और लचीला बनाने की जरूरत होगी। व्यक्तिगत स्तर पर, इसका अर्थ हो सकता है कि लोगों को अपने करियर पथ, पारिवारिक नियोजन, और वृद्धावस्था की तैयारी के बारे में नए तरीके से सोचना पड़ सकता है। समाज के रूप में, इसका मतलब है कि सरकारों, व्यवसायों और समुदायों को जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के अनुरूप अधिक लचीली और समर्थनात्मक नीतियां और प्रणालियां विकसित करनी होंगी।
अंततः, यह अध्ययन दिखाता है कि वैश्विक प्रजनन दर में गिरावट के प्रभाव को समझने और इसका मुकाबला करने के लिए एक समन्वित और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यह हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जा सकता है जहां सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, और अवसर सुनिश्चित किए जा सकें, जबकि हम जनसांख्यिकीय परिवर्तनों की चुनौतियों का सामना करते हैं।
भारत के लिए इस अध्ययन के मायने
भारत के संदर्भ में, यह प्रोजेक्शन कि कुल प्रजनन दर (TFR) 2026 और 2027 तक क्रमशः 1.75 से नीचे गिर जाएगी, यह संकेत देता है कि भारत भी जनसंख्या के उम्रदराज होने और श्रमबल में परिवर्तनों की संभावनाओं का सामना कर रहा है।
यह परिवर्तन भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर कई महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि:
- श्रमबल में बदलाव: युवा श्रमबल की संख्या में कमी आ सकती है, जिससे कार्यस्थलों और उद्योगों में बदलाव आएंगे।
- वृद्ध जनसंख्या की देखभाल: उम्रदराज जनसंख्या के लिए देखभाल और सहायता की बढ़ती आवश्यकताएँ होंगी, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं और पेंशन प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश की आवश्यकता बढ़ जाएगी ताकि युवा जनसंख्या अधिक प्रतिस्पर्धी और उत्पादक बन सके।
- जनसांख्यिकीय लाभ का उपयोग: भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभ का उपयोग करने की जरूरत होगी, जबकि वह अभी भी उपलब्ध है, ताकि भविष्य की चुनौतियों के लिए एक मजबूत आर्थिक और सामाजिक ढांचा तैयार किया जा सके।