माँ दुर्गा चालीसा का महत्व
माँ दुर्गा चालीसा हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है, जो देवी दुर्गा की स्तुति और आराधना करता है। यह चालीसा 40 श्लोकों का एक संग्रह है जो माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों, उनकी शक्तियों, उनके द्वारा किए गए असुरों के वध, और भक्तों की रक्षा के बारे में वर्णन करता है। इसके पाठ से भक्तों को आत्मिक शक्ति, साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।
महत्व और लाभ:
- आध्यात्मिक शक्ति: माँ दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भक्तों में आध्यात्मिक शक्ति और आत्मबल का संचार होता है। यह उन्हें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
- नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: माँ दुर्गा की आराधना से घर और परिवार पर छाई हुई किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा या बाधा का नाश होता है।
- संकटों से रक्षा: माँ दुर्गा चालीसा के पाठ से भक्तों को विभिन्न संकटों, दुखों और बीमारियों से मुक्ति मिलती है। देवी माँ अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
- आत्मिक शांति और संतोष: इसका पाठ भक्तों को मानसिक शांति प्रदान करता है और उन्हें आत्मिक संतोष की अनुभूति कराता है।
- धार्मिक उत्सवों में महत्व: नवरात्रि जैसे धार्मिक उत्सवों के दौरान माँ दुर्गा चालीसा का पाठ विशेष रूप से किया जाता है, जिससे उत्सव की पवित्रता और भक्तिमय माहौल बढ़ जाता है।
माँ दुर्गा चालीसा का पाठ न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह भक्तों को उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने की प्रेरणा भी देता है। इसके पाठ से जीवन में आध्यात्मिकता का संचार होता है और व्यक्ति आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनता है।
माँ दुर्गा चालीसा हिंदी अर्थ
नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥१॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥२॥
अर्थ ⇒ सब को सुख देने वाली माँ दुर्गा हम सब आपको प्रणाम करते हैं। सब के दुखों का हरण कर लेने वाली माता अम्बे हम आपको प्रणाम करते हैं। हे माता ! आपकी ज्योति निराकार अर्थात असीम है। इसकी कोई सीमा नहीं है। आपकी ज्योति का प्रकाश पृथ्वी, आकाश, पाताल तीनो लोको में फैला हुआ है।
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥३॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥४॥
अर्थ ⇒ हे माता ! चंद्रमा की भांति चमकने वाला आपका मुख अति विशाल है। आपका यह रूप अति सुंदर और सुहावना है। जो भी आपके दर्शन कर लेता है उसे परमसुख की प्राप्ति हो जाती है।
तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥५॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥६॥
अर्थ ⇒ हे माता ! इस संसार की सारी शक्तियां आपके अंदर विराजमान है। और आप सारे जग का पालन करने के लिए धन और प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। माँ अन्नपूर्णा के रूप में आप ही इस जग का पालन करती हैं। और आप जगत जननी सुंदरी हैं।
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥७॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥८॥
अर्थ ⇒ प्रलय काल में आप ही सबका नाश करती हैं हे माँ ! आप ही गौरी के रूप में शिव शंकर जी की प्रिय है। भगवान शिव शंकर जी व सभी योगी आप का गुणगान करते हैं। ब्रह्मा जी व विष्णु जी भी आपका प्रतिदिन ध्यान करते हैं।
रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥९॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥१०॥
अर्थ ⇒ हे माता ! आपने ही माता सरस्वती का रूप धारण करके सभी ऋषि-मुनियों को सद्बुद्धि देकर उन सभी का उद्धार किया है। हे माँ अम्बे ! आपने ही श्री नरसिंह का रूप धारण किया था और खम्बे को फाड़कर प्रकट हुई थी।
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥११॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥१२॥
अर्थ ⇒ हे माता ! आपने ही हिरण्यकश्यप को स्वर्ग भेज कर भक्त पहलाद के प्राणों की रक्षा की थी। और आप ही माता लक्ष्मी के रूप में इस संसार में नारायण अर्थात भगवान विष्णु जी की प्रिय है।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥१३॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥१४॥
अर्थ ⇒ हे माता ! आप क्षीरसागर मैं विष्णु जी के साथ शेषशय्या पर विराजमान है। हे माँ ! अपना आशीर्वाद देकर मेरे मन की इच्छाओं को पूरा कीजिए। हिंगलाज में माँ भवानी का रूप भी आपका ही है। आप की महिमा आनंद है। इसका बखान नहीं किया जा सकता।
मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥१५॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥१६॥
अर्थ ⇒ मातंगी देवी, धूमावाती देवी, भुवनेश्वरी देवी और बांग्लामुखी देवी ये सब आपके ही रूप हैं। जो सबको सुख प्रदान करते हैं। हे माता ! आप ही श्री भैरवी है व आप ही जग तारण करने वाली तारा है। और आप ही छिन्नमस्ता देवी के रूप में सभी के दुखों का निवारण करती हैं।
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥१७॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥१८॥
अर्थ ⇒ आप सिंह की सवारी करने वाली माँ भवानी है। और वीर हनुमान जी आपकी अगवानी में चलते हैं। आपके हाथों में खप्पर व तलवार रहते हैं। जिनको देखकर काल भी डर कर भाग जाता है।
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥१९॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥२०॥
अर्थ ⇒ हे माता ! आपके हाथों में महाशक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र हैं जिन्हें देखकर शत्रु भय से कांपने लगता है। नगरकोट में भी आप ही विराजमान है। हे माता ! तीनों लोकों में आपका नाम प्रसिद्ध है।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥२१॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥२२॥
अर्थ ⇒ हे माँ ! आपने ही शुम्भ व निशुम्भ नामक राक्षसों का वध किया था। और रखतबीज शंखन नामक राक्षस (जिसे वरदान था कि अगर उसके रक्त की एक बूंद भी धरती पर गिर जाए तो सैकड़ों राक्षस पैदा हो जाते थे) उसे भी आप ने ही मारा है। अभिमानी महिषासुर के पापों का घड़ा भर गया था। जिससे धरती माँ भी परेशान हो चुकी थी।
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥२३॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥२४॥
अर्थ ⇒ तब आपने ही माँ काली का रूप धारण करके पापी महिषासुर का उसकी सेना सहित वध किया था। जब भी संत जन व आपके भक्तों पर विपदा आती है। तब हर बार आप उनकी रक्षा करती हैं।
अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥२५॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥२६॥
अर्थ ⇒ जब तक अमरपुरी वह सब लोक विद्यमान हैं। आपकी महिमा से तब तक शोक रहित है। हे माता ! ज्वाला में भी आपकी ज्योति विद्यमान है। सब नर और नारी हमेशा आपकी पूजा करते हैं।
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥२७॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥२८॥
अर्थ ⇒ जो भी भक्त श्रद्धा प्रेम और भक्ति से आपके यश की गाथा गाता है। दुख और दरिद्रता उसके आसपास भी नहीं आती। जो प्राणी पूरी निष्ठा से आपका ध्यान करता है। वह हमेशा के लिए जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥२९॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥३०॥
अर्थ ⇒ सभी देव व ऋषि-मुनि भी यही कहते हैं कि आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है। शंकराचार्य जी ने कठोर तप करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि इन सब पर जीत हासिल कर ली।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥३१॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥३२॥
अर्थ ⇒ उन्होंने प्रतिदिन भगवान शंकर जी का ध्यान किया था। परंतु आपका समरण नहीं किया। वह आपकी शक्ति का भेद नहीं जान पाए। लेकिन जब उनकी शक्ति चली गई तब मन ही मन वे बहुत पछताए।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥३३॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥३४॥
अर्थ ⇒ और तब आप की शरण में आकर उन्होंने आपके यश का गुणगान किया। हे माँ भवानी ! आपकी जय हो ! जय हो ! जय हो। हे माँ जगदम्बा ! तब आप ने प्रसन्न होकर उनकी शक्ति को लौटाने में जरा भी देर नहीं की।
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥३५॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥३६॥
अर्थ ⇒ हे माता ! मैं चारों तरफ से कष्टों से घिरा हुआ हूं। आपके अलावा मेरे इन दुखों को और कौन हर सकता है। आशा और तृष्णा मुझे सताते हैं। और मोह, काम, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या इन सब से मैं दुखी हूं।
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥३७॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥३८॥
अर्थ ⇒ हे माता ! एकचित्त होकर मैं आपका ध्यान करता हूं। हे महारानी ! आप मेरे शत्रु का नाश कीजिए। हे माता ! आप परम दयालु है आप मुझ पर कृपा करें। और मुझे रिद्धि सिद्धि आदि प्रदान करें।
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥३९॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥४०॥
अर्थ ⇒ जब तक मैं जीवित रहूं, हे माता ! तब तक आप की कृपा बनी रहे। आपकी यश गाथा मैं सदा गाता रहूंगा। जो भक्त पूरी श्रद्धा भक्ति से Durga Chalisa के पाठ का गायन करता है। उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥४१॥
अर्थ ⇒ यह सब जानकर देविदास आपकी शरण में आया है, हे माँ भवानी ! मुझ पर अपनी कृपा करना।
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